प्रतिशोध | Pratishodh
श्रेणी : कहानियाँ / Stories
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
118
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १३ )
श्वीकार करती है, साइकेल, तुम सच कहते थे । तलाक कोई हे
दिल्ली नहीं । छात्र में रपे पिता तौर दादरा के बिना सूनेपन
का अनुभव करती हूँ ।' अंत: माइकेल के शब्दीं में हम भी उससे
यह् कटै चिना नदं रद सकते कि 'तुम्हें अभी इन बातों के
सममने की अक्ले नदीं त्रा दे॥
अंतिम कहानी 'भविष्य' में कथा की रोचकता श्र सरसतीा
नहीं--केवल कुछ सिद्धान्तों का विवेचन मात्र है । माठभाषा के
संबंध में दोनों मिनो की सेद उक्ति ध्यान देने योग्य दे--
टक यार देश की स्वतंत्रता चली जाय तो कुंड परवाई
नहीं । उसे दम वापस ला सकते ह; परंतु भापाकी एकर वार भी
खोईं हुई खतंत्रता फिर भाप नदीं हो सकती ॥
दिंसा औौर अहिंसा के संबंध में भी दोनों के विचार
मननीय हैं; पर इसका अंतिम निणंय संभव नदी, श्रतः कहानी
लेखक ने भी इस समस्या को सुलमाने की चेष्ान कर इसका
निखेय भविष्य” पर छोड़ दिया है । कुछ सिद्धान्त वाक्य बड़े
. सुन्दर इन
'सिद्धि की अपेक्षा संकल्प में अधिक मिठास है!
ध्यशोमंदिर की पहली सीढ़ी घर द्वार की देहरी है |?
मुझे कु करना है और केवल अपने लिए नहीं सारे संसार
फे लिए करना दै!
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