प्रवचना | Prawachana

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Prawachana by गुरुदत्त - Gurudutt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रवंचना १.७ तुमको मारा है । प्रच्छा श्रव खाग्रो । खाकर तुम श्रव उधर प्राना, हम तुमको प्रमोफ़ोन रिकार्ड सुनापेंगे । इतना कह बह श्रॉरत श्रौर चच्चे चले गये । उन वच्चों में दो लड़के शोर एक लउ़की यो । प्रेमनाय श्रौर उसके सायी विस्मप से उस श्रोरत को जाते देखते रहे । जब वे दूसरे लान मं चते गये तो प्रेमनाथ ने मिठाई प्रोर फल सव में वाट दिये ! पचात प्रामोफ़ोन के बजने की ग्रावाजू माई तो सव वहां जा पहुचे । रात जब प्रेमनाय नें माँ को यह कहानी सुनाई तो वहू रोने लगी थी 1 प्रेमनाथ ने माँ के गले में बाहें डालकर पूछा, “मां तुम रोती क्यों हो, हमको मिठाई नहीं सानी चाहिये थो न ?” माँ ने भांखें पॉंदकर कहा, “यह मेने नहीं कहा, प्रेम ।”” “तो फिर तुम रोई क्यों हो ?” माँ ने बात दल कर कहु, पप्रय सो जागरो । चहुत थक गये होगे) देखो, रविवार को बड़े लोग मर्चरे मे संर फरने श्राति हं तुमो उचर सेलने नहीं जाना चाहिये ।' इसके उपरान्त मेद्क फी परीक्षा में पा्त होने की प्रदना यी । पठ्‌ तन्‌ १६१५ या] : प्रेमनाथ को स्कूल में भरती कराते समय उसकी मां को इस सब से का ज्ञान नहीं था, जो हुंग्रा । इस पर भी उसने प्रपना पेट फाटफर, पड़ो- सियों के कपड़े सीकर बोर दिन-रात मेहनत से सरवूतों के योमों से गिरियाँ निफाल कर, प्रेमनाप को पढ़ाने का प्रचन्य दिया था । म्रेमनाय उस घात फो नलो-मांति समनने लगा था । दुन्द्ा उसको बह्धिन अब वारह वर्ष को हो गई थी । यह स्रत नहु जासङीयाः मांसे हिन्द पड़ उह रामापखा पटने लगो थी 1 प्रेसनाय से अंप्रेमो पड़े उसको किताबें पड़ने पोग्य हो गई यो घोर फिर घर का कास-




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