अहिंसा विवेक | Ahinsha Vivak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
158
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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मान-स्तम्भ उसके जीवन ससुद्र का प्रकाश स्तम्भ वन गया 1 सूरज
की किरणें जैसे भोस की बँदों को सोख लेती है ज्ञान की जआालोकः
रदहिमयों ने गौतम के क्रोघ को गला दिया । सभामण्डप में
विद्यमान तीथेंडूर वद्धमान महावीर की मंगल मुद्रा को वह
एकटक देख रहा था, उसका ज्ञान-मद चूर हो गया । उसका हुदय
श्रद्धा से जगमगा उठा ! आया था शास्त्राथं करने किन्तु शास्त्र
के सभी दास्त्र ठण्डे पड़ गये । सच है, तन से पहिले जिनका मन
तपस्वी बनता है, वे ही सच्चे तपस्वी है इस्द्रभुति ने शिष्यत्व
ग्रहण कर लिया । इधर गौतम के क्रोध के ताले ट्टे, उधर मेष-
गजंन जैसी दिव्य ध्वनि श्रोताओं के मन-धरती को सींचने लगी ¢
प्रतीक्षा सुफल हुई। सच्ची पात्रता के आगे ज्ञान का अखूट
खजाना खुल गया ।
तीर्थंकर की वाणी ने धर्म संघ का धरातर प्राप्त किया ।
उस घर्मंसंघ ने, जिसमें संसार के समस्त छोटे-वडे, गरीब-अमीर,.
राजा रक ओर् ब्राह्मण-शूद्र को समान अधिकार धा।
तीथेद्कुर महावीर के उपदेश सरल धे, आडम्बर और श्रौप-
चारिकताओओं से कहीं दूर । वे जनता की भाषा में जनहित के लिए.
होते थे--सरल, सुबोध और सुलभ । उनके उपदेशो में तत्व-दशेन
तो था ही, सृष्टि रचना भोर सामाजिक तथा वैयक्तिक शंकां
पर भी प्रकाश डाला गया था तत्कालीन धम्म, जीवन भौर जगत-
की जिन गृढृताओं का समाधान नहीं दंड पाये ये, तीरथङ्कुर महावीर
की दिव्य वाणी ने उन्हें सापेक्षता के पटल पर स्पष्ट किया । वहाँ
न खण्डन था, न मण्डन बरनू उनकी वाणी की सत्य तक सीधी
पहुंची थी । ' सच्ची रुचि, सच्ची पहिचान भर सच्चा आचरण
| यही भगवान महावीर के उपदेशों का सार था! अहिखा, सत्य
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