बन्दनवार | Bandhanvar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
172
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about देवेन्द्र सत्यार्थी - Devendra Satyarthi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चन््दनवारं
युग में ।
नेर्मम नतन अध्याय शुरू हो रहा है
><
सइड के
नि 0
> >
प्क
शेष परीक्ता दर्द निरय करेगा
कि जीर युग के संचय मं क्या जायगा कहा रहेगा
आज पालिश की हुई जीता को पहचानना होगा
दमासा इसीलिए बज उठा है ।
रवीन्दनाथ ठाकुर की इस कविता के पीछे एक चिशेष ६ृष्टिकोण नजर
ता हे; जो उनकी इससे पहले की रचनाओं में नहीं उभर पाया था । इसे
ते हुए रूट यह कहने को मन होता ह् कि साहित्यिक रली श्रथवा ढांचे
कहीं श्रधिक क्वि का दृष्टिकोण ही मुख्य वस्तु हे। “वाक्य रसात्मकं
व्यम् की कसौटी श्राघुनिक कथिता का वास्तविक मूल्यांकन नहीं कर
कती, क्योकि श्राघुनिक कवितामं रस का स्थान दृष्टिकोण ने ले
या है। रवीन्द्रनाथ ठाकुर को कथिता मे यह परिवतेन आकस्मिक
हीं था। क
जेंसा कि श्री गोपाल द्दालदार ने समसामयिक बंगला कविता की चर्चा
रते हुए लिखा दे, कुछ दिनों से हसारे जीवन में जो जिज्ञासा उत्पन्न हो
री थी, उसी को झाकस्मिक और उम्र अभिव्यक्ति अब हम देख रहे हैं, यह
लतना नहीं चाहिए । सम्भवतः यह उन्मादना सामयिक है. परन्तु यह जिज्ञासा
1मयिक नहींह् । यह बात हम सभी जानते हूं कि इस युग में एक जीवन:
सासा दम सवके लिए दुर्निवार दो उटीदहं1 इसमं सन्देह नहीं कि प्रत्येक
'ग सें मनुप्य-जीवन जिज्ञासा से चंचल होता है । श्रसल में उसकी चिन्ता-
वना में, कथा-कर्पना मं, सरष्टि-साघना में, उसकी कला-दृष्टि में, साहित्य:
गीत मं, उसके शहर कै ऊपर, उसके समाज के ऊपर, उसके श्रादन-कानून
+ उसके विद्रोह -चिरोध में उसी जीवन-जिन्तासा का ही स्वाक्तर रहना हे।
[किन फिर खास-खास युग में यह जीवन सत्य उम्र शरीर श्रसहनीय हो कर
71मन खडा हाता हं, उख समय उसका सामना करते इए मनुण्य चाक उखता
[, दोनों झांख बन्द हो जाती हैं, उस विराट् श्ौर भयंकर मूर्ति के सामने
ख पीला पद् जाता ह । हमारे जमाने में सभी दें में जीवन इस खत्यु के
५.
User Reviews
No Reviews | Add Yours...