नानेश वाणी (समीक्षा धारा) | Nanesh Vani (samikshan Dhara)

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Nanesh Vani (samikshan Dhara) by आचार्य श्री नानेश - Acharya Shri Nanesh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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समीक्षण-घारा,/9 एव अनेक विकट परिस्थितियो के बावजूद भी धैर्य रूप गम्भीरता से वजनी हो, वही व्यवित्त स्थूलावस्था आदि की सभी सन्धियो को समीक्षण दृष्टि से देखता हुआ अरिहत पद के अर्थ के प्रति झुका देता है तो वह एक पद के नमस्कार से सभी पापो का नाश करने मे समर्थ हो जाता है, अर्थात्‌ आत्मा एव परमात्मा के निशाने को साध लेता है। एएक नमन से सभी पापों का विनाश जब द्रव्य-भाव उभय प्रकार की सधियो का झुकाव होता है, समीक्षण दृष्टि बनती हे तो साध्यता प्राप्त हो ही जाती है | अर्थात्‌ इस प्रकार का नमन सभी पापो का विनाश करने वाला होता है। बाहुबलीजी का रूपक आपने सुना दी होगा । जिनकी शकित्ति के सामने षट्खण्डाधिपति चक्रवर्ती भरत को भी दयुकना पडा | जिनका भुजबल बड़े-बड़े योद्धाओ को धराशायी करने मे समर्थं था। लेकिन जब उनके अन्तर्जीवन मे विरक्ति का बीज प्रस्फूटित हुआ उन्हे सारा ससार निस्सार लगने लगा । भौतिकता मे उन्हे सुख नहीं सुखाभास प्रतीत होने लगा। जलती हुए दुनिया मे आत्मा का त्राण-रक्षण करने के लिए युद्ध क्षेत्र मे ही पच मुष्टि लुचन कर लिया। खतो दतो निरारमो पव्वडय अणगरिय | शान्त, दान्त, निरारभी अनगार के रूप म प्रव्रजित हो गये | चल पड आत्म-साधना के विशाल पथ पर! सबकुछ छोड दिया, किन्तु अन्तरग सधिया नहीं ञ्ुक पाडू | अभिमान का विषधर फूत्कार उठा । अहो। मेरे दीक्षित होने से पहले मेरे ही सहोदर 98 भ्राता दीक्षित हो चुके है । म उनको केसे नमन करू? मै बडा हू. वे छोटे हैं | लेकिन प्रभु चरणो मे जाऊगा तो अवश्य ही उन्हे नमस्कार करना होगा | इसी विचारधारा ने उनको उद्धिग्न बना दिया | अन्त मे उन्होने यह निर्णय लिया कि मैं अभी प्रभु चरण मे नही जाऊगा | 'जब तक भँ केवलज्ञान प्राप्त न कर लू, तब तक नही जाऊगा । पापो का विनाश ओर दिव्य ज्ञान उत्पन्न होने के बाद मुञ्चे उन लघु भ्राताओ के चरणो मे नही झुकना पडेगा साधना की चरम परिस्थिति पाने के लिये बाहुबलि अणगार गहन कान्तार मे चले जाते है । वृढ निश्चय कं साथ अर्थात्‌ “देह वा पातयामि, कार्य वा साधयामि यातो शरीर को छोड दूगा या कार्य की सिद्धि कर लूगा। मुझे यातो केवलज्ञान पा लेना है या शरीर छोड देना है | ध्यान-साधना मे तल्‍्लीन




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