गुर्जर इतिहास | Gurjar Itihas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गुजर इतिहास पहला अध्याय गुजर (गजर) और उजरात अतनिकच्शिना (१) अत्यन्त प्राचीन काल के भारतीय इतिहास में गुजेर अथवा गुजर नाप की किसी जाति विशिप्ट का वर्णन हमें नहीं मिलती । जिस सध्य युगीन इतिहास काल में ( पांचवी, छरी शवाब्दि में ) हमें, गुजेंसें (गूजनरों) का बर्सन मिलता है, बदद उनके उस्कप काल का वन है. जिसमें थे अपनी ज्ञातीय स्थिति को गुजर राष्ट्र, गुजर, शु्ेरत्रा ( शुज्नरात ) शुर्जरेश्वर, गुर्जर भूमि के रुप में उपस्थित कर रहे हैं । यदद उनके उस बीर रूप का चर्णन है जिसे चैदिक कालीन वर्ण व्यपश्या ने धात्रिय संज्ञा दी है; जा सारतीय इतिदास की आाचीन दीज्ञी वीर पूजा की गाथा के रूप में हमारे सामने छाती है । इस काल में चैरिकयुग के चत्रियों के ब्मलेक नये- नये चंश या कुल भारत सूमि पर अवतीर्स होते हैं, निनमे से झमेकों को गस्तिस लुल प्राय है, किस्दु युर्जयों का उद्कर्ष उत्तरो्तर चढ़ता ह्धा चष्टिगोचर हो रंद्दा है । विदास की स्चसे ऊँची श्रे री ज्ञातियों द्वारा राय्य पा रूप घारण करना है श्र यह स्थिति संगठित उच्च शनसतिक 'इन्नति की चरम सीमा दै, जिसका पर्णन दस विशेष रूप से संचवी छठी शनाद्दि से वारहथीं शता्दि लक सौर उसके घाद थी परम्परागत रुप




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