पत्थर और आँसू | Patthar Aur Aanshu
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
41 MB
कुल पष्ठ :
240
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१८
इला :
येलेद्र:
सला:
शेलेन्द्र :
पत्थर 'प्रोर झाँसु
गया । रब मैं जीवन भर के लिए तुम्हारे हाथों बिक गया
हूँ। पर मुझसे श्रव किसी रहम, किसी प्यार की उम्मीद न
रखो ।
तुम्हारा यह सब कुछ कहना मेरे लिए खूशी की बात नहीं है
शेलेन्द्र । लेकिन मैं पहले भी दिल से मजबूर थी, श्रौर श्रब
भी मजबूर हूँ । अ्रगर मेरा प्यार तुम्हारी जहर भरी बातों से
मर सकता तो कभी का मर गया होता । मैं तुम्हारे साथ
रहना चाहती थी श्रौर रहूँगी । तुमने मुझे श्रपनी बनाकर
संसार के सामने लज्जित श्रौर तिरस्कृत होने से बचा लिया
है । भ्रव जो सज़ा भी तुम दोगे, मैं खामोशी से, खुशी से, बिना
उफ़ किये सह् लूंगी ।
(चिल्लाकर) बस, बस, हल श्रौर ढोग का यहु खेल श्रव
बन्द करो ।
(सहमकर) भगवान् के लिए धीरे बोलिये । डाक्टर ऊपर ही
हैं। वे सुन लेंगे)
(बड़ी क्रूरता से) वे सुन लें, यही तो मैं चाहता हूँ । अब तक
वे श्रौर सव यही सोचते हैँ कि मेरा श्रौर तुम्हारा प्रेम-विवाह
है) मैं भी तुमसे विवाह करने के लिए उतना ही भ्रातुर था
जितनी कि तुम । लेकिन अब मैं सबको श्रसलियत से श्रागाह्
कर देना चाहता हूं । मैं उन्हें बता देना चाहता हूँ कि मैंने
प्यार नहीं किया, प्यार की कीमत श्रदा की है ।
: श्राप बार-बार इस फ़िकरे को दुहराकर मुभ क्यों तकलीफ़
पहुँचाते हैं ? श्रगर श्राप यही सोचते हैं कि मैंने ज्यादती की
है सुदगर्जी से काम लिया है, तो मुझे घर में सजा दे लीजिए ।
दूसरों के सामने तो बेइज्ज़त न कीजिए ।
: (बड़ो कररता से) लेकिन तुमने क्या कियाथा? तुमने भी तो
कहा था कि श्रगर मैं शादी नहीं करूँगा तो तुम मुझे बद-
( म ५
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