गुणस्थान दर्पण | Gunsthandarpan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Gunsthandarpan by श्री मत्सहजानन्द - Shri Matsahajanand

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्री मत्सहजानन्द - Shri Matsahajanand

Add Infomation AboutShri Matsahajanand

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
गुणस्थानद्पण ६ 2 इस तरह २८ मोह प्रकृतियोंकी प्रथमसचावाला मिथ्या दृष्टि कहलाता है । झब यह सदि मिथ्याइष्टि जीव हो गया | २७ की सत्तावाले मिध्यादष्टि--२८ की सत्तावा.५ मिथ्यादष्टिको जब मिथ्यात्वमें कुछ अधिक काल व्यतीत होजाता है तत्र सम्यक्प्रकृतिकी उद्द लना बदलना हो कर वह सम्पम्मिध्यात्वप्रकृतिरूप होजाती है पश्चात सम्यग्मिध्यात्वकी उदद लना होकर वह मिध्यात्वरूप हो जाती है जब सम्पकुप्रकृतिकी उदद लना होचुकती है श्र सम्यग्मिथ्यात्वकी उदद लना न हो पावे तब वहां वह २७ मोहमी यप्रकृतिकी सत्ता वालों मिध्यादष्टि कहलाता है । यह भी सादि मिथ्यादष्टि है । २६ मोहप्रकृतिकी सचावाला सादि मिथ्यादष्टि-- जब सम्यग्मिध्यात्वकी भी उद लना होकर वह मिश्यात्व- प्रकृतिरूप हो जाती है तब झनन्ताजुबन्धी क्रोध मान माया लोभ व॒मिथ्यात्वप्रकृति तथा चारित्र मोहनीयकी शेष २१ प्र कृतियां इस प्रकार २६ की सचाबाला यह मिथ्यादष्टि है । इसे उद् लित मिध्यादष्टि भी कहते हैं । २४ की सत्ता बाला मिथ्यादष्टि--जिस मिथ्यादष्टि ने झनन्तानुबन्धी कपायकी विसंयोजना अप्रत्याख्य ना- वरण रूप हो जाना क्ररक़ें उपशम सम्यक्तत प्राप्त किया




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now