जैन स्वाध्याय सुभाषित माला भाग - 2 | Jain Swadhyay Subhashit Mala Bhag - 2
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
231
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about आचार्य श्री हस्तीमलजी महाराज - Acharya Shri Hastimalji Maharaj
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दर] जैन स्वाध्याय सुभाषित माला
कुन्थु शान्त्यभिनन्दनारक - मुनिरधर्मोऽजित सभवोऽ-
नन्त श्री सुमतिद्च तीर्थपतय कुर्वन्तु नो मङ्गलप् ॥ ३
च
अर्य--भगवान महावीर, श्री पाश्वनाथ, नमिनाथ, सुपाह्वेनाथ,
सुविधिनाथ, श्चोयामनाथ, मल्लिनाथ, चन्दरपरभ, नेमिनाथ,
त्रःषभदेव, वासुपुज्य, विमलनाथ, पद्मप्रभ, शीत्तलनाथ, कुन्धुनाय,
शान्तिनाथ, अभिनन्दन, अरक-झरनाथ, मुनिसुव्रत घमनाय,
श्रजितनाथः, सभवनाथ, भरनन्तनाय, सुमतिनाथ, ये तीथपनि-
तीर्थकर हम सवका भगल करे ।
नाभेयाऽजित सभवाख्च्युतमवा श्रीसवरस्यात्मज-
स्ती्थेश सुमति कुदोशषयरुचि षष्ठ सुपाइवस्तथा
श्रीचन्द्रप्रभतीथेकृच्च सुविधि श्री शीतलं सौख्यद ।
श्रं याम-प्रु वासुपूज्य विमला कुर्वन्तु नो मङ्खलम् ।॥ ४
भ्रय--ऋषभ, भ्रजित, भवरहित श्री सभव, सुमतिनाय प्रौर छट्3
पद्मप्रभ सुपाऽ्व, श्रीचन्दरपरभ, तीर्थकर सुधिधि, सुत्दाथो
शीतलनाथ, श्च यासप्रभु, वासुपूज्य, विमल ये तीर्थकर हम
सवका मगल करे ।
इन्द्राग्याऽऽमुग-मूतय समकला व्यक्त सुधर्मा तथा ।
पप्ठो मण्डित पुत्रको गणघरो मौर्यात्मिज सप्तम ॥
श्रयो दृण्टिरकम्पितो गणमणि, धीरोऽचल्नातृक 1
नेत्र्यो ठम प्रमासगणभृ्छुवेन्तु नो मन्गेम् ॥ ५
्य--- -भूनि, च्रग्निमूति, वायुभूति, व्यक्त, मुपर्मा, मण्डिनिपू
>।~ मौ्रत्मिज धंगोदृष्टि ~ धीश्मकम्पिन गृणमनियीर
User Reviews
No Reviews | Add Yours...