जैन स्वाध्याय सुभाषित माला भाग - 2 | Jain Swadhyay Subhashit Mala Bhag - 2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दर] जैन स्वाध्याय सुभाषित माला कुन्थु शान्त्यभिनन्दनारक - मुनिरधर्मोऽजित सभवोऽ- नन्त श्री सुमतिद्च तीर्थपतय कुर्वन्तु नो मङ्गलप्‌ ॥ ३ च अर्य--भगवान महावीर, श्री पाश्वनाथ, नमिनाथ, सुपाह्वेनाथ, सुविधिनाथ, श्चोयामनाथ, मल्लिनाथ, चन्दरपरभ, नेमिनाथ, त्रःषभदेव, वासुपुज्य, विमलनाथ, पद्मप्रभ, शीत्तलनाथ, कुन्धुनाय, शान्तिनाथ, अभिनन्दन, अरक-झरनाथ, मुनिसुव्रत घमनाय, श्रजितनाथः, सभवनाथ, भरनन्तनाय, सुमतिनाथ, ये तीथपनि- तीर्थकर हम सवका भगल करे । नाभेयाऽजित सभवाख्च्युतमवा श्रीसवरस्यात्मज- स्ती्थेश सुमति कुदोशषयरुचि षष्ठ सुपाइवस्तथा श्रीचन्द्रप्रभतीथेकृच्च सुविधि श्री शीतलं सौख्यद । श्रं याम-प्रु वासुपूज्य विमला कुर्वन्तु नो मङ्खलम्‌ ।॥ ४ भ्रय--ऋषभ, भ्रजित, भवरहित श्री सभव, सुमतिनाय प्रौर छट्‌3 पद्मप्रभ सुपाऽ्व, श्रीचन्दरपरभ, तीर्थकर सुधिधि, सुत्दाथो शीतलनाथ, श्च यासप्रभु, वासुपूज्य, विमल ये तीर्थकर हम सवका मगल करे । इन्द्राग्याऽऽमुग-मूतय समकला व्यक्त सुधर्मा तथा । पप्ठो मण्डित पुत्रको गणघरो मौर्यात्मिज सप्तम ॥ श्रयो दृण्टिरकम्पितो गणमणि, धीरोऽचल्नातृक 1 नेत्र्यो ठम प्रमासगणभृ्छुवेन्तु नो मन्गेम्‌ ॥ ५ ्य--- -भूनि, च्रग्निमूति, वायुभूति, व्यक्त, मुपर्मा, मण्डिनिपू >।~ मौ्रत्मिज धंगोदृष्टि ~ धीश्मकम्पिन गृणमनियीर




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