सामयिक पाठादि संग्रह | Samayik Pathadi Sangrah
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
140
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श श 1
इनछंक्रश को भांति दोनों हाथ करे सो 'अंक्शित' । ०-कछुवे की
मांति शंगों को सिकोडे सो 'कच्छपारिंगित' । ८-मली की भांति
पाश्वमाग से प्रयास करे सो “मत्स्योदर्त' । ६ षन्धके प्रति दुष्ट
भाव राखे सो 'मनोदुष्ट' । १०-शेनों कुदनियों से धपनी छाती
को दबाव सो विदिका-बद्ध' ! ११-पुरु आचाये से घमकाया
जावे सो 'भय” । १२-गुरु आाचाय से डरे सो 'भयसात' । १३-ैं
संघ पूज्य घनू” ऐसा जाव रक्खे सो “ऋद्धि मौरव' । १४-छपने
को ऊंचा माने सो गौरथ । १५-द्िपकर षंदना करे सो “स्तनित, ।
१६-गुरु श्याह्ञा छो भंग करे सो (प्रत्यनीक, । १७-कल्ट विसंवाद
करके क्षमा नही करे सो श्रदुष्टः । १८-दृ सरे साथियो को घमकारवं
सो (तर्जितः । १६-शाल्ञीय पाठं न बोलकर बातें करे सो शबः
२०-प१ठ पठते हंसी मजाक करे सो लित ¡ २९-कटि, गरदन
और हृदय पर बल (सलवटें) छाले सो “त्रिवलित” । २२-भौंदि
चढावे सो 'कु'चित' ०३-इघर उघर देखे सो 'दृष्ट*। २४-देव या
गुरु के सन्मुख खड़ा न रहे सो “शरद” । गशनबंदना करने को
इल्लत (बेगार) समे सो 'संघकर मोचन' । २६०उपकरण झादि
पलञे्े तो वदनां करे सो श्रालब्ध । २७-उपकरण शआादि की
चाहना से वंदना करे सो “श्रनालब्घ' । २८-पाठ श्र विधि में
कमी करे सो 'हीन” । २६-झालोचना 'ादि पाठों में विलंब करे सो
उत्तरयूलिक' | दे०्पाठ को स्पष्ट न बोलकर मन में गुणे सो 'मूक' ।
३१-पाठ को ऐसा जोर से बोले कि दूसरों के पाठ श्ादि में विजन
(मद ) पढ़जावे सो 'ददु र । २९-भेरबी कल्याण मादि रगो से
स्वर साघकर पाठ पढ़े सो 'सुललित” दोष है ।
कुतिकम में इन बत्तीस में से एक भी दोष शगावे तो
लिलेशका फल नंदीं मिलता है देसी जिनाका है !
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