लोकगीतों की सामाजिक व्याख्या | Lokagiton Ki Samajik Vyakhya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
268
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ६ )
पर्याप्त प्रयास किया है श्रौर उनका प्रयास बहूत श्रंशों तक सफल भी हुश्रा हैं ।
परन्तु संतोप करके बेड रहन का समय श्रमी नहीं श्राया है । हमारे हिन्दी क्त्र
के विभिन्न स्थानों में श्रमी श्रगणित बहुमूल्य लोकगीत बिखरे पढ़े हैं । उनका
संग्रह अधिक तेजी श्रीर चुस्ती के साथ होना चाहिए | यदि हमारे ये सीत
हमारी सुस्ती कं कारण खो गये, धूल में मिल गण, स्मृति-पटल से उतर गए, तो
हम ्रप्राधी रहराय जायग ।
हमारे यह! लोकगीत के संग्रह का काम तो थोड़ा बहुत हुआ है । गीता
कं भावार्थ या शब्दार्थं भी दिए गए हैं. । परन्तु उनका मूल्यांकन अभी तक पूरी
तोर से नहीं हो पाया है, न उनकी सामाजिक व्याख्या ही ठीक तरह हो पायी
हैं । ग्रब इस कायं में दर नहीं होनी चाहिए क्योंकि हमें ययाशीघ्र 'जाति, वर्ण,
संस्कृत: समाज से चाल कर मूल मनज को फिर से खोज निकालना है ।'
'लोकगीता की सामाजिक व्याख्या पाठका की संचा में प्रस्तुत है । जिस
समय श्रत पत्रिकः सं यह व्याख्या लख-माला के रूप में प्रकाशित हो रही
थी उस समय श्रद्धय पंडित रामनरेश त्रिपाठी ने लिखा था, ''लोकगीतों पर
श्रापकफी लेखमाला बढ़ी सुन्दर निकल रही है । आप बढ़ी रहराई से समाज में
व्याप्त संस्कृति को देख रहे हैं । में बड़े ध्यान से पढ़ता हूँ । मेरे 'ग्रामर्गत'
संग्रह का सच्चा लाभ श्राप ले रहे हैं ; यही उसकी साथकता है ।” त्रिपादी जी
के इस पत्र से मेरा उत्साह बढ़ा और जब डाक्टर उदय नारायण तिवारी,
डाक्टर महादेव साहा तथा अन्य विद्वान मिन्नों ने कहा कि यह व्याख्या पुस्तक
रूप में झा जानी चाहिये तो मेरा भी साहस श्ना श्रोर मैंने इस पुस्तक की
पाण्डुलिपि फिर से तेयार की और भाई नमंदश्वर चतुर्वेदी की तत्परता से पुस्तक
प्रकाशित भी हो गई ।
मेंने गीतों की व्याख्या के पूर्व॑'सिद्धान्त' का एक अध्याय दे दिया हैं ।
इससे पाठकों को लोकवार्ता तथा लोकसीतों से संबंधित कुछ भ्रमो को दूर
करने में श्रवश्य सहायता मिलेगी । गीतो का श्रध्ययन समक्त करके मेने 'लोक
गीत संग्रह' का एक अध्याय शरीर जोड़ दिया है । गीतों के चुनाव में किसी
विशेष सिद्धान्त का विचार मैंने नहीं किया । पाठकों को चाहिए कि वे इनमें से
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