नयवाद | Nayevad

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Nayevad by मुनिश्री नथमलजी - Munishri Nathamal Ji

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मुनि नथमल जी का जन्म राजस्थान के झुंझुनूं जिले के टमकोर ग्राम में 1920 में हुआ उन्होने 1930 में अपनी 10वर्ष की अल्प आयु में उस समय के तेरापंथ धर्मसंघ के अष्टमाचार्य कालुराम जी के कर कमलो से जैन भागवत दिक्षा ग्रहण की,उन्होने अणुव्रत,प्रेक्षाध्यान,जिवन विज्ञान आदि विषयों पर साहित्य का सर्जन किया।तेरापंथ घर्म संघ के नवमाचार्य आचार्य तुलसी के अंतरग सहयोगी के रुप में रहे एंव 1995 में उन्होने दशमाचार्य के रुप में सेवाएं दी,वे प्राकृत,संस्कृत आदि भाषाओं के पंडित के रुप में व उच्च कोटी के दार्शनिक के रुप में ख्याति अर्जित की।उनका स्वर्गवास 9 मई 2010 को राजस्थान के सरदारशहर कस्बे में हुआ।

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अन्तर्राष्ट्रीय-निरपेक्षता बहुता और भयता व्यक्ति और समूद क॑ एकान्तिक: भाप्रह पर भस+ न्लुलन बढ़ता दै सामसर्य की कड़ी टूट घाती है । भधिद्नम मुप्यो्ा अधिकतम हित- यह जो सामाजिक उपयोगिता का सिद्धात है. वह निरफंक्ष नीति पर आधारित है। इमी के आधार पर हिटलर ने यहूदियोँ पर मनमाना भव्याचार छिया । (षडु ) सर्यकों के लिए (अस) सब्यकों तथा बों के लिए द्लोटों के दितों का थलिदान करने के सिद्धान्त का भी चित्य एकम्तबाद की दन हैं । सामन्तवादी युग में बड़ों के लिए छोटों के हि्तांका द्याग उचित माना जाता था। बटुसख्यकों के लिए ममदन तथा बढ़े राष्ट्रों के लिए छोटे राष्ट्रों की उपेधा आज भी दोती है। यद अशान्ति का देतु बनता है। सापेश नीति के अनुसार किसी क॑ छिए सी किसी का भनिष्ट: नहीं शिया जा सकता 1 बढ़े राट्र छोटे राष्रों को नगप्य मान उें आगे थाने का अवसर: नदी दे) इस निरपेक्षनीति की प्रतिक्रिया होनी है । पल्एष्य दोटे राों में बड़ों के प्रवि भस्नेद माद उ्तन्नशो बानादै। वै ख्गल्निले




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