क्रांति बीज | Kranti Bij
श्रेणी : धार्मिक / Religious
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
206
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
![आचार्य श्री रजनीश ( ओशो ) - Acharya Shri Rajneesh (OSHO)](https://epustakalay.com/wp-content/uploads/2019/09/osho-1177313-e1568726689866.jpg?height=150)
ओशो (मूल नाम रजनीश) (जन्मतः चंद्र मोहन जैन, ११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०), जिन्हें क्रमशः भगवान श्री रजनीश, ओशो रजनीश, या केवल रजनीश के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता थे। अपने संपूर्ण जीवनकाल में आचार्य रजनीश को एक विवादास्पद रहस्यदर्शी, गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया। वे धार्मिक रूढ़िवादिता के बहुत कठोर आलोचक थे, जिसकी वजह से वह बहुत ही जल्दी विवादित हो गए और ताउम्र विवादित ही रहे। १९६० के दशक में उन्होंने पूरे भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रा की और वे समाजवाद, महात्मा गाँधी, और हिंदू धार्मिक रूढ़िवाद के प्रखर आलो
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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दोपहर तप गई है । पटाद वृर पर् पू अंगारों की तरह
चमफ रहे हैं ।
एक सुनसान रास्ते से गुजरता हूं 1 वांसों के घने झुरमुट हैं थौर
उनकी छाया मन्दी लगती है 1 .
कोई अपरिचित चिड़िया भीत गाती है। उसके निमंत्रण को माने
वदी स्क जाता हूँ ।
एक व्यक्ति साय टे 1 पृष रे है- “छोच को कंसे जीते, काम को
कैसे जीते ?' यह् वात तो भव रोज-रोज पुदी जाती टै । इसके पूछने
में ही भूल है , यहीं उनसे कहता हूं ।
समस्या जीतने की हैं ही नहीं । समस्पा-मात्र जानने की है ।
हम न फ्रोध को जानते है और न काम को जानते है । यह अश्ञान हो
हमारी पराजय है ।
जानना जीतना हो जाता है । क्रोध होता है, काम होता है तब
हम नहीं होते हैं । होग नही होता है, इसलिये हम नहीं होते है। इस
मूर्च्छा में जो होता है, वह बिल्कुल यांत्रिक है 1 मूर्चछीं टूटते ही पछ-
तावा आता है, पर वह व्यय है क्योकि जो परता रहा है वह् कामके
पक्रडते पुनः सो जाने को है । यह् न सो पावे-अम्च्छा वनौ रह
जायूति सम्पक् स्मृति बनी रहे तो पाया जाता है कि न श्रोघ है,
न काम है । पांचिकता टूट जाती दै खीर पिर किसी को जीतना
नहीं पड़ता है । दुश्मन पायें ही नहीं जाते हैं ।
एक प्रतीक कथा से समझें 1 अंधेरे में कोई रस्सी सांप दीखती है !
कुछ उसे देखकर भागते हैं, कुछ लड़ने की तैयारी दरते *ै।
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