मैथिलीशरण गुप्त | Maithilisharan Gupta
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
231
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका दी-युग की कविता ¬
उपज चाहिये । नए-नए भावों को उपज [जसक दद्य में नहीं
बह कभी अच्छी कविता नहीं कर सकता । ये बातें प्रतिभा को
बदौलत होती हैं, इसो लिंग संस्कृत वालों ने प्रति पा को हो प्रघा-
नता दी है । प्रतिभा इश्वरदक्त होतो है, अभ्यास से वह न
प्राप्त दोती ।”
?४ - “कवि का काम है कितव्रह प्रक्रति-विकास को खूब
ब्यान से देखे 19६ >६ जिस कवि में प्राकृतिक खरष्टि और प्रकृति
के कौशल के दखने अर समझने का जितना हो झघिक ज्ञान
होता है, बह उतना ही बड़ा कवि भी होता है ।”
२०--प्रकृति-पर्थालोचना के सिवा कवि को सानव-स्व भाव
की आलोचना का भी अभ्यास करना चाहिये । मनुष्य श्रपने
जीवन में अनेक प्रकार के सुख, दुःख आदि का अनुभव करता
है। उसकी दशा कभी एक-दी नहीं रहती । श्रनेक प्रकार को
चिकार-तरंगे उसके मन में उठा करती है । इन जिकारों की जाँच
ज्ञान का अनुभव करना सब का काम नहीं । कवल कि ही
इसका अनुभव कराने में समथं होता है |
२१--'कबिता को प्रभावोत्पादक बनाने के लिये उचित
शब्द-स्थापना की भी बड़ी जरूरत है । > मनोभाव शब्दा ही
के द्वारा व्यक्त होत हैं । अतएव सयुक्ति शब्द-स्थापन के बिना
कविता ताश ह्ृदय-हारिणो नहीं हो सक्तो । जो कवि अच्छी
शब्दस्थापना करना नहीं जानता, अथवा यों कहिए कि जिसके
पास काफ़ी शब्दसमूह नही, उस कविता करने का परिश्रम ही
न करना चाहिए ।?”
२२-- “कविता सादी हो, जोत से भरो हो, ओर श्रसलियत
गिरी हृद न हो । सादगी स यह मतलब नदा क शब्दसमूह ही
सादा हो, परन्तु विचार-परंपरा भी सादी हो । भाव आर विचार
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