मैथिलीशरण गुप्त | Maithilisharan Gupta

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Maithilisharan Gupta by रामरतन भटनागर - Ramratan Bhatnagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका दी-युग की कविता ¬ उपज चाहिये । नए-नए भावों को उपज [जसक दद्य में नहीं बह कभी अच्छी कविता नहीं कर सकता । ये बातें प्रतिभा को बदौलत होती हैं, इसो लिंग संस्कृत वालों ने प्रति पा को हो प्रघा- नता दी है । प्रतिभा इश्वरदक्त होतो है, अभ्यास से वह न प्राप्त दोती ।” ?४ - “कवि का काम है कितव्रह प्रक्रति-विकास को खूब ब्यान से देखे 19६ >६ जिस कवि में प्राकृतिक खरष्टि और प्रकृति के कौशल के दखने अर समझने का जितना हो झघिक ज्ञान होता है, बह उतना ही बड़ा कवि भी होता है ।” २०--प्रकृति-पर्थालोचना के सिवा कवि को सानव-स्व भाव की आलोचना का भी अभ्यास करना चाहिये । मनुष्य श्रपने जीवन में अनेक प्रकार के सुख, दुःख आदि का अनुभव करता है। उसकी दशा कभी एक-दी नहीं रहती । श्रनेक प्रकार को चिकार-तरंगे उसके मन में उठा करती है । इन जिकारों की जाँच ज्ञान का अनुभव करना सब का काम नहीं । कवल कि ही इसका अनुभव कराने में समथं होता है | २१--'कबिता को प्रभावोत्पादक बनाने के लिये उचित शब्द-स्थापना की भी बड़ी जरूरत है । > मनोभाव शब्दा ही के द्वारा व्यक्त होत हैं । अतएव सयुक्ति शब्द-स्थापन के बिना कविता ताश ह्ृदय-हारिणो नहीं हो सक्तो । जो कवि अच्छी शब्दस्थापना करना नहीं जानता, अथवा यों कहिए कि जिसके पास काफ़ी शब्दसमूह नही, उस कविता करने का परिश्रम ही न करना चाहिए ।?” २२-- “कविता सादी हो, जोत से भरो हो, ओर श्रसलियत गिरी हृद न हो । सादगी स यह मतलब नदा क शब्दसमूह ही सादा हो, परन्तु विचार-परंपरा भी सादी हो । भाव आर विचार




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