धरती अब भी घूम रही है | Dharati Ab Bhi Ghum Rahi Hai

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Dharati Ab Bhi Ghum Rahi Hai by विष्णु प्रभाकर - Vishnu Prabhakar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about विष्णु प्रभाकर - Vishnu Prabhakar

Add Infomation AboutVishnu Prabhakar

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
१२ धरती श्रब भी घूम रही है मुभे पूरा विश्वास था दार्मा मेरी बात नहीं टाल सकता । श्रौर मेरी बात भी कया । श्रसल मे वह तुम्हारा मुरीद है । कहता था श्रौरत' ' '' बात काटकर सचिव साहब बोले, 'जी नहीं, यह न श्राप है म्रौर न श्रीमती निमंल । यह तो श्रापकी कौटुम्बिक प्रतिभादै।' इसपर सबने स्वीकृतिसूचक ह्ष-ध्वनि कौ । छोटे न्यायमूर्ति इसका प्रतिवाद कर पाते कि बैरेने श्राकर फिर सलाम किया । विस्मित-से डायरेक्टर बोले, “इस बार किसकी नियुक्ति होने वाली है? बेरे ने कहा, 'दो बच्चे हजर से मिलने श्राए हैं ।' 'हमसे ?'--छोटे न्यायमूर्ति श्रचकचाकर बोले । 'जी। किसके बच्चे? 'जी मालूम नहीं । भाई-बहन हैं । गरीब जान पड़ते हैं ।' 'ग्ररे तो ब्रेवकूफ ! कुछ दे-दिवाकर लौटा दिया होता ।' 'बहुत कोशिश की पर वे कुछ मांगते ही नहीं । बस श्रापसे मिलना मांगते हैं ।' छोटे न्यायमूति तेजी से उठे । मुख उनका विकृत हो शभ्राया, पर न जाने क्या सोचकर वे फिर बेठ गए । कहा, 'ग्राज खुशी का दिन है । यहीं ले रा ।' दो क्षण बाद, वुरी तरह सहमे-सकपकाए, जिन दो बच्चों ने वहां प्रवेश किया वे नीना श्रौर कमल थे । श्रांसुप्नों के दाग श्रभी गालों पर देष थे । दृष्टि से भय भरा पड़ता था । एक साथ सबने उनको देखा जसे मदिरा के प्याले में मक्खी पड गई हो । छोटे न्यायमूर्ति ने पूछा, 'कहां से श्राए हो ?' 'जी'''जी'”' ' नीना ने कहना चाहा पर मुंह से शब्द नहीं निकले श्रौर बावजूद सबके श्राइवासन के वे कई क्षण हतप्रभ, विमूढ़, श्रपलक देखते ही रहे, बस देखते ही रहे । झाखिर मनमोहिनी उठी । पास प्राकर बोली, कितने प्यारे, कितने सुन्दर बच्चे हैः ।' इन शब्दों में न जाने क्या था । नीना को जैसे करण्ट छू गई । एक बारगी हढ़ कण्ठ से बोल उठी, “श्रापने हमारे पिताजी को जेल भेजा है। श्राप उन्हें छोड़ दे** ।' कमल ने उसी हृढ़ता से कहा, हमारे पास पचास रुपए हँ । भ्रापने तीन




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now