जैन धर्म के प्रभावक आचार्य | Jain Dharam Ke Parbhawak Acharya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22 MB
कुल पष्ठ :
458
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)षे
(तेरह)
परिश्रम का परिणाम है ।
विवेक दीप
परागम प्रवीण, बुद्धि उजागर, भवाब्धि पतवार, कमेंनिष्ठ, करुणा कुबेर
एवं जन-जन हितेषी जेनाचार्योँ की असाधारण योग्यता से एवं उनकी दूरगामी
पद यात्राओं से उत्तर, दक्षिण के अनेक राजवंश प्रभावित हुए । शासन शक्तियों
ने उनका भारी सम्मान किया । विविध मानद उपाधियों से जेनाचार्य विभूषित
किये गए पर किसी प्रकार की पद-प्रतिष्ठा उन्हें दिग्धरान्तन कर सकी । पुवं
विवेक के साथ उन्होंने महावीर संघ को संरक्षण दिया एवं विस्तार भी । आज
भी जंनाचार्यो के समृज्ज्वल एवं समुन्नत इतिहास के सामने प्रबुद्धचेता व्यक्ति
नतमस्तक हो जाते हैं। मेरे मानस पर भी जनाचार्यों की विरल विशेषताओं का
प्रभाव लम्बेसमयसेअक्रितिथा।
संयोगतः भगवान् महावीर की पच्चीसबीं निर्वाण शताब्दी के अवसर पर
उनकी भचंना में साहित्य समपित करने का शुभ्न चिन्तन तेरापंथके अधिनायक
युगप्रघान आचार्यश्री तुलसी के तत्वावधान में चला । जेन दर्शन से सम्बन्धित
पच्चीस विषय चुने गए थे उनमें किसी एक विषय पर सौ प्ृष्ठों जितनी सामग्री
लेखन का निर्देश मुझे प्राप्त हुआ । मैंने अपनी सहज रुचि के अनुसार “जन धमं
के प्रभावक आचायें” इस विषय को चुना और हार्दिक निष्ठा से लिखना प्रारंभ
किया । मेरी लेखनी जसे ही भागे बढ़ी, मुझे अनुभव हुआ कि प्रारंभ में यह
विषय जितना सरल लग रहा है उतना ही दुरूह है । इस प्रसंग पर कवि माघ
का भावपूर्ण पद्य स्मृति-पटल पर उभर आया--
त्गत्वमितिरा नाद्रौ नेदं सिन्धावगाहूता ।
अलंचनीयताहेतुरुभयं तन्मनस्विनि ।।
सागर गहरा होता है ऊंचा नहीं, शल उन्नत होता है गहरा नहीं, अत: इन्हें
मापा जा सकता है। पर उभय विशेषताओं से समन्वित होने के कारण महा-
पुरुषों का जीवन अमाप्य होता हैं ।
अभिव्यक्ति की इस विशेषता को अनुभरुत करलेने पर भी प्रभावक आचार्या
के जीवनवृत्त को शब्द-पटल पर चिच्नित करने का मैंने प्रयास किया है । मैं जानती
हुं, सौ पृष्ठों की मर्यादा का अतिक्रमण करके भी मनस्वी आचार्योके जीवन
महासागर से बिन्दु मात्र ही ले पाई हूं, पर देवाचंना की शुभ वेला में दो-चार
अक्षत उपहार से जेसी तृप्ति भक्ति-भावित मानस को होती है, बसी ही तृप्ति
इस स्वत्प सामग्री के प्रस्तुतीकरण में मुझे हुई है ।
साधना जीवन की मर्यादा के अनुरूप जितना इतिहास एवं साहित्य मैं बटोर
पाई हूं, उसी के आधार पर यह लेखन है । जिसमें सम्भवत: बहुत कुछ अनदेखा,.
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