मानुषी | Manushi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
120
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मषीं ९.
साथ कंकड़, कंटक, खड ओर हिस्र पड भी कम नहीं होते ।
ऐसे पथ पर चलने के छिए जिस साहस्र की श्रावदयकता
होती है, उसका श्रभाव उसमें न था । यदि उस साहस के
साथ कुछ चातुय उसमे चोर होता, तो कदाचित् को
शोचनीय प्रसङ्क उपस्थित न होता ।
एक विनि युद्ध अहीर ने ाकर मनोहर को श्प
दुःख सुनाया । उसके ऊपर य्रमगोपाठ जर्मीदार के कई सौ
रुपये निकछते ध्रा रहै थे । निरन्तर कुछ-न-कुछ देकर भी वह
सपना खाता श्योदा न करा पाया था । ऋण के इस अंघकूप
से उबारने के छिए रामगोपाल ने उसे रात भर रस्सी के
सहारे कुए में ठटका रकक््खा था । अन्त में उसकी जमींदारी की
कुछ पाइयाँ ौर कोड़ियाँ ही लिखाकर और उसके कई सो रुपयों
की रसीद देकर उसे सदा के छिए ऋण-मुक्त कर दिया था ।
मनोहरलाल सब हाल सुनकर ऐसा उत्तेजित हो उठा, मानो
यह व्यवहार उखीके साथ किया गया हौ । उसने सघ संवाद
लिखकर भट-से समाचार-पत्र में पने के लिए मेज दिया । ..
जव समाचार-पृत्र मै उक्त समाचार छपा, तवे गोँव-
वाढों को सिश्चित रूप से माठूम हो गया कि संसार में अब
कछिकाठ अपनी सोलहों कठाओं से अवतीण हो णया है ।
मी से झपने घर-गाँव की बुराई ऐसी कड़ी भाषा में
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