आधुनिक कथा - साहित्य | Adhunik Katha-sahitya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ६ 9 द्मधिक, पने साहित्य कै द्वारा जानते है| साहिल्य्‌-सष्टि एक सामा- जिक-मानथ की कृति दै, यह जीवन; तथा परिस्थितियों से दूर कही श्राकीश की नीलिमा-मयी-नीदारिका मं नहीं 'पमप सकती, यह निर्षिवाद है | जिस समय समन्वय के सॉर्वमीम-सिद्धन्त' के छाड़कर साहित्य किसी एक प्रषति बिशेपकी श्योर शरग्रंसर ऐता है, उसका चिप प्रारम्भ हा जता दै ।' स्सा रीतिकालीन-समाज, शरीर संष्टियकी सूदम-्राश्मिक, तथा दार्दिक-चुर्तियाँ' विद्रोह कर उट, ` श्यौर सहस स्वाभाविक मानवीय-मधर्तियो का पुनर्न हरा । देश स जागरण कौ लहर दी .पडौ, -जीधन की सुचारता, श्रौर . शामज्ञस्य के संदेशः सुनाई पढ़ने लगी, ग्रौरं बुद्धि तथा, हृदम के. शधमुनित्सतृलन की माग रैनि, लगी | यदी हमारे सादिका शआ्रध्ुनिक युग है| ' धग के प्रकाशन, तथा श्रन्य वबैज्ञानिक-साधनी ने ईस सयोग द्विया, श्रौर। ओवन के उपयोगी-तंत्वां का. प्रचार, तथा ` प्रसार दानै लया | ऑधुनिकं-साहित्य ' की विषेचनी से, इसकी परीक्षा हे सकती है.। साहित्य में युग परिवर्तन श्र जागरण की सूचना देने चालों में, भारतेन्हु, मैथिलीशर्ण, गुप्त और पे सचन्द प्रमुख हैं । , भारतीय जीथम तरै शिंश' दिकास-पिंशोष की भूना ' हमे इुरा कलाकारों को सानिया दे शिल्पी है, पद दगएरों आंखों में नुनन-पकशा भरतेन सत्य प्रा है । द्ाधघुयिक साहित्य इन्दी, प्रयासों, साघानाओं का सरल है. जिससे जीवन, जनता; और जगत का संतुशित्‌ .. सामझवन्म है |. मारतीय-साहिन्य-गरिया था कभी देवदासी, , कभी , राजिदासी भौ, वद्‌ यही पहुँचकर जीवस-संगिगी बन जांती है | ठीक थी ' है, जा साहित्य कभी वदिक-कऋषियां का, कमी रापकृष्ण का. कमी युज्ध सशयीर का, कभी पृथ्वीराज जचद का, ¦ कमी भूषणः शिवाजी का, तथा कगों हरिश्चद और शरंग्रेजों का था, `, बहु प्यं कख जनी कराने दकृर जनता क द गथा | इससे सुर, की कोई शन्ति निष तक सकती है। दमारे साहित्य से झत्र एंश 1. के + । ॥ हज 1




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