उपदेश सार संग्रह | Updesh Saar Sangrah
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
310
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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जैसे यात्रा करते हुए यात्री को किसी घमेशाला में विविध देशों से आझाये हुए यात्री कुछ समय कि
लिये मिल जाते है, उसी तरह इस देह-रूपी धर्मशाला के कार्ण कं यात्री इस जीव को छु समय केः लिये
मिल जाते है जिनमें से यह जीव अज्ञान से विभिन्न व्यक्तियों को अपने शत्रु, मित्र, पुत्र, साया, बहिन
दि मानकर उनसे तरह तरह की चेष्टायें करता है । .,
४; जैसे पागल कुत्ता पत्थर मारने वाले मनुष्य को चोट पहुँचाने वाल्ला न, समक कर पत्थर को काटने
. दौडता है, इसी तरदद संसारी जीव अज्ञान से अपने असली शत्रु कम को न सममकर झन्य जीवों को झपना
कैरी समम कर उनसे देष किया करता है । ष
के सुख के दुख देत है, कमं देत कमर ।
¦ उरे सुर आप ही, ध्वजा पवन के जोर ॥
यानी--जीव को उसके कर्म ही सुख दुख देते दै, कोई और व्यक्ति सुख दुख नहीं देता । जैसे कि
ध्वजा हवा के कारणं छापने आप उलमती सुलमती रहती है ।
ज्ञाने के कारण जीव जगत् के अन्य सब पदार्थों की ओर देखता दे किन्तु अपनी झोर नहीं
देखता । वह बाहरी बातों में तो चतुर बन जाता दै परन्तु अपने झापको समभने में निरा मूर्ख बना
रहता है ।
एक गोव से ११ मनुष्य आजीविका ऊ लिये परदेश को चले, उनको माग {मे एकं नदी मिली
उसको उन्होने बहुत सावधानी से पार क्रिया | जव वे नदी पार कर गये, तव उन्होंने झपनी संभाल की कि
हममें से कोई झादमी नदी में तो नहीं बह गया । प्रत्येक मनुष्य अपने छाप 'को न गिनकर दूसरे दूसरे
मनुष्यों क्रो गिन लेता था, इस कारण जो भी गिनता उसकी गिनती में दश ही मनध्य आते । तत्र वे
विचारने लगे कि हम में से एक मनुष्य कौन-सा कम हो गया हे । अपनी इस श्ार्शका का समाधान वे कुछ
भी न कर पाये क्योंकि उनमें से कोई भी व्यक्ति गुम न हुआ था, सभी मोजूद थे ।
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इतने में एक घुडसवार उधर आ निकला उसने उन सबको चिन्ता मग्न देखकर उनसे चिन्ता का
कारण पूछा । उन्होंने उत्तर दिया कि हम ११ मनुष्य गांव से चले थे किन्तु नदी को पार करते ही १० रद
गये हैं । पता नदीं चलता किं हममे से कौन सा आदमी नदी मे बह गया है ।
घुडसवार ने सरसरी निगाह से देखकर समम लिया कि ्ादमी तो ये ११ ही हैं किन्तु इनमें से
गिनने वाला आदमी अपने आप को न गिनकर केवल दूसरों को गिन लेता है, इस कारण ११ होते हुए भी
ये ्रपने च्यापको १० ही समम रहे है 1 घुडसवार ने सारा मामला सममकर उनसे कदा किं “यदि तुम मुझे
१००) रपये पारितोषिक दो तो में तुम्दारे ११ झादमी पूरे कर दू' ।?
घुडसवार की बात बड़ी प्रसन्नता से सबने स्वीकार कर ली और उसको १००) इकट्रे करके दे
दिये । तब घुड़सवार ने चाबुक उठाकर प्रत्येक मनुष्य को क्रम से एक-एक चाबुक लगाते हुए १-२-३-४-
व्यादि गिनेते हुए ११ आदमी गिनवा दिये । इसपर वे भ्रामीण॒ बडे प्रसन्न हुए ।
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