गृहस्थ - धर्म भाग - 1 | Grihasth - Dharam bhag-1
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
286
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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जाकर देखे तो क्था कोई सीप को चादी मान सकता है ? नहीं ।
इसी प्रकार ससार के पदार्थे जब तक सोह की ष्टि देखे
जाते हैं. तब तक वे जिस रूप मे माने जाते हैं उसी रूप
मे दिखाई देते हैं, किन्तु ग्रगर पदार्थों के मूल स्वरूप । की
परीक्षा की जाय तो वे ऐसे नहीं प्रतीत होगे, बल्कि एक
जुदे रूप मे दिल्लाई देंगे । जब पदार्थो की वास्तविकता सम
मे झा जायगी तब ठनके सम्बन्ध में उत्पस्त होने वाली
विपरीतता मिट जायगी । जब पदार्थों की वास्तविकता का
भान होता है श्रौर विपरीतता मिटजाती है तमी सम्य-
र्दष्टिपन प्रकट होता है । सीप दूर से चांदी मालूम होती थी,
किम्तु पास जाने से वह सीप मालूम होने लगी । सीप में
सीप-पन तो पहले ही मौजूद था, परन्तु दूरी के कारण ही
सीप मे विपरीतता प्रतीत होती थी श्रौर वह चांदी मालम
. हो रही थी । पास जाकर देखने से विपरीतता दुर हो गई
श्रौर उसकी वास्तविकता जान पडने लगी । इस तरह ,वस्तु
के पास जाने से भ्रौर मली-माति परीक्षण करने से वस्तु
के विषय मे ज्ञान की विपरीतता दूर होती & तथा वास्त
विकता मालूम होती है श्रौर तमी जीव सम्यष्ष्टि बता हू ।
सीप की माति भ्रत्य पदार्थों के विषय में भी विप-
रीतता मालूम होने लगती है । पदार्थों के विषय में विप-
रीतता हो रही है इस विषय मे शास्त्र मे कहा हे--'जीवे
भ्रजीवसन्ना, श्रजीवे जीवसनना' “अर्थात् जीव को श्रजीव श्रौर
“ श्रजीव को जीव सममना, इत्यादि दस प्रकार के मिध्यात्व
हैं । कहा जा सकता है कि कौन ऐसा मनुष्य होगा जो जीव
को शभ्रजीव मानता हो * इस प्रश्न का उत्तर यह है कि
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