तुलसी के चार दल- भाग 1 | Tulsi Ke Char Dal -Bhag 1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गोस्वामी तुलसीदास का जीवन-दृन्त चुके थे श्रौर उनकी जीवनी को, पाठ करने के लिये, संक्षिप्त कर चुके ये । प्रतएव उनके द्वारा किसी प्रकार के चमत्कार का आरोप प्रसंभव नहीं कहा जा सकता } यही वृत्ति वावा रघुवरदासख मेँ भी दिखाई देती है । श्वेत सर्प का गोस्वामीजी के स्पश से युनि हा जाना, उनके यहाँ पंडितों द्वारा चोरी कराते समय राम-लक्मण कां पहरा देना, हनुमानजी का चोरों से उनकी रक्षा करना, भगवान्‌ मधघुसूदन फा रामायण को सही करना, कलि की तलवार से गेस्वामीजी का हनुमान्‌ द्वारा वचना, जानकीजी का बालिका के रूप में गोरामीजी को भजन कराना, गोस्वामीजी का बद्धा को युवती वना देना, खी को पुरुष वना देना, मरे को जिलाकर विधवा को सधवा वना देना, चरणा्त द्वाय खत बालकों को जीबनदान देना, छृष्ण भगवान्‌ का गोस्वामीजी के लिये राम-रूप धारण करना, राजदूतों का कंठी-माला छीनते समय गेस्वामीजी को देखकर कांप जाना, सन्नाट्‌ की मूरखैता पर दिल्ली का--गोस्वामीजी की स्ठुति के कारण-- हनुमान की सेना द्वारा विष्वंस किया जाना, गोस्वामीजी के वल के खटा से वैश्या मे वैराग्य उत्पन्न हो जाना, गंगाजी की स्तुति द्वारा दरीदत्त ज्नाहाण की दरिद्रता दूर करना, प्रेत की सुक्ति करना इत्यादि इत्यादि चमत्कारपूयं घटनाओं से गोस्वामीजी की जीवनी मुँधथी हुई है। इनकी चर्चा केवल इसलिये की गई है कि ये गाथाएँ गर्वामीजी के चरित्र का एक झंग हैं । हमे इस वात से सरोकार नहीं कि वे सत्य है अथवा मिथ्या। हम कोई इतिहास नीं लिखते । हम ते गोस्वामीजी का वह जीवन-घृत्त दे रहे हैं जो लोगों ने उनके लिये निर्माण किया है। समकालीन श्रीर परवर्ती व्यक्ति गेस्वामीजी के किस पूज्य र्ट से देखते थे इसका उल्लेख इन कहा- नियं मे श्रवश्य है। हिंदुस्तानी एकेडमी से प्रकारित गोस्वामी तुलसी- दासः को विज्ञ लेखक ने गोस्वामीजी के संर्व॑ध की प्रत्येक `




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