नियमसार प्रवचन भाग 4 | Niyamsaar Pravachan (Bhag - Iv)
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
176
श्रेणी :
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महावीरप्रसाद जैन - Mahavirprasad Jain
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श्री मत्सहजानन्द - Shri Matsahajanand
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गाथा ५६ > ९१
हि जीवमें सिथ्यावका जीं चल रहा टै शरीर उसके कारण जो ङ
लोकिक वेदनाएं हो रही हैं उन लोकवेदनावोंका इलाज यह जीव षिध्य-
सेषनसे, चिषयरसपानसे, यहां षां की थोती बातोंसे: घन चैभवके संचय
से नाना उपायोको करता है किन्तु इसका क्लेश तो मोक्षस्वरूप नहीं है ।
थोड़ी शांति समभते हैं किन्तु फिर अ्योका -स्यों दु.खी। तो जव तक वहं
मिथ्यात्वका अजीशणं न पचेगा तव तक संसारक श्लेश दूर नहीं हो सकते
यहं मिथ्यात्व है स्वयकी हिंसा _।
प्रनन्ताचुवन्धी क्रो घसे झात्मदिंसा-- श्न्नताजुबन्धी क्रोध उसे
कहते हैं जो भिथ्यास्वका पोषण करे, सस्यक्त्ष ही न होने दे! इस क्रोधमे
' पने श्नापके स्वरूपकी रश्च खचर नदीं रहती है । अपने श्रापसे यद् जीव
धिमुख रहता है । यह जीव कितना पने घाप पर क्रोध किये जा रहा
है ? यह् अपने श्रापकी किननी बरबादीका फाम है ? वह पुरुष सद्दाभाग है
जिसको अपने चापकर स्वरूपका मान रहता दै । दृसरोकी गालिया सुनकर
हस सफ, समम सके, यह श्रक्ञानकी चेष्ठा है । इस चेष्टाका मुममें प्रवेश
नदों है-ऐसां ३ श्रात्मत्रल कर सके, वह मक्षमा छामिनन्दनीय और
पच्य हे । ः
। -श्मनन्ताुबन्धी मानसे श्रात्मर्दिसा-- अनन्ताजुबन्धी मान, घमरुड
का-परिणाम ऐसा यत्न है जिसमें अपने ापके स्वरूपकी सुधबुय दी न
* रहे। एकदम भाहममें दृष्टि है; सब लोग तुच्छं है, च नहीं जानते हैं; इनमें
दम कुछ विशेष हैं, उत्तम कार्य किया करते हैं; झपनेको बड़ा मानना शरीर
दूसकी तुचंड समकना--ऐसी जिसकी चृष्टि हुई है; उसने; झपने छापके
स्वरूपका झपमात किया है। दुसरोंका छपमान करना) 'पने स्वरूपका
श्रसान दै । जीवनमे यह गुण तो श्रवश्य लाश्नो कि-जितना बन सके हम
दूसर.ा सान् दीररक्ला करे, समान ही रक्खा करे, श्रपमानकभीन
कर । निश्वयसे समभिये कि जिस दुष्टपरिणस्के कारण दुसरोका अपमान
क दविया-जाता दै, चुहू. परिणाम इसके स्वूपक्ता वाधक है । मानन कर
सृके तो श्रपूमान भी नःकरे । `
, ` अनन्ताचुबन्धी मायासे श्रात्म्दिसा - अनन्ताज्ुवन्धी माया--घोह,
कितनी टेढी मेढी चित्तश्रत्ति है कि यह उसे चन लेने हो नहीं देती है । यत्र
तत्र विकल्पजाल सचा करते है । सायाचारी पुरुप कभ श्रारामसे रह नही
पाना है | बहुत दु वृत्ति है। पनी सही वृत्तिरखो, सीधा साफ काम
रक्लो । जनन्तातुबन्धी मायाने इस अथु धात्सदेत्र पर महान् प्रहार किया
दै! यह चित्राम वानेके योग्य भी नदीं रहता है ।
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