टर्की का मुस्तफ़ा कमालपाशा | Turkey Ka Mustapha Kamalpasha
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
278
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)टर्की का मुस्तफ़ा कमाल्पाशा र
दवाए् निकला करतो, जो दिन-दहाडे रेगती इई चुड़लों या
मुतनियों-सी प्रतीत होतों । मकानों के दरवाज़े सदा बंद रक््खे
जाते; खिड़कियाँ भी उड़की हुई रहतों। ख़ियाँ घोर अधकार
और मूर्खता का जीवन व्यतीत करतां । थोड़े में इतना कह देना
अलम् होगा कि उनकी जीवनियोँ कत्ते ओर व्रिद्धियों से भी गई
वीती थी।
जुवेदा भी ओरो की तरह घर की वाउ मे वंद रहा करती |
.जब मुस्तफ़ा पैदा इआ, तव वह तीस साल की थी | जव वह
सात साट की थी, तव से बुरक्ने के अंदर रह रही थी । वह शायद
ही कभी घर की 'देहरी के बाहर निकलती, और जव जाना ही
पड़ता, तब अपने संरक्षकों से घिरी रहती ! उसे शायद ही कभी
लोगों से बात करने का मौक़ा मिठता--सिवा उन लोगों के,
जो उसकी पड़ोसिनें थी । जुवेदा वित्कुल निरक्षर थी-न लिख
सकती थी, न पढ़ सकती थी। बाहरी दुनिया के रंग-रवैए
, और तौर-तरीक़ों से वह सबंधा अपरिचित और अनभिज्ञ थी ।
तुक छोग अपनी ल्ियों पर बहुत अविश्वास किया करते ये ।
उसकी दृष्टि में महिछाएँ खाना पकाने; गहस्थी संभाठने, बच्चे
जनने ओर छड़कों को पाठने के अर्थ ही जन्म ख्या करती थो |
फिर भी जुवेदा अपने नन्दे-से बुदुव की मालकिन थी |
उसमें शासन करने की रक्ति थी) हयँ, मुस्से बहुत धी।
जुबेदा अच्छे किसान-खानदान की ठड़की थी। शरीर सेबी
और तंदुरुस्त थी । उसके वाठ खर घने थे, आंखे नीटी थीं,
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