कुरल काव्य | Kural-kavya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
300
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
गोविन्द राय जैन - Govind Ray Jain
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श्री एलाचार्य -Shree Elachary
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ १४ ]
जब चन्द्रगुप्त मौर्य के समय उत्तर भारत में १२ वर्ष का भयंकर
दर्मिक्ष पड़ा तच आठ हजार सुनियों का संच अन्तिम श्रतकेवली
भद्रवाहु के नेदत्व में दक्षिण भारत गया । ओर वहां जाकर पाण्ड्य
नरेश के रक्षण में ठहरा । पाठक ऐतिहासिक शोधों से देखेंगे कि
दक्षिण में पारइ्य, चोल और चेर नामक वड़े सुद्द् ओर समृद्ध राज्य
विद्यमान थे । अशोक के शिलालेखों में इनको पराजित राज्यों की
श्रेणी में न लिखकर सित्र राज्यों की श्रेणी में लिखा गया है । दुर्भि
का समय निकल जाने पर इन मुनियों ने उत्तर भारत लोट जाने की
जव चच चलाई तव स्नेही पाण्य नरेश ने उनको स जाने का ही
आग्रह किया । इस समय इन मुनियों के प्रधान नेता विशाखाचाय थे,
जिनकी स्मृति सें आज भी दक्षिण में विजगापटस अथोत् विशाख
पटम अवस्थित है । विशखाचा्यं को अन्य लेखकों ने ज्ञान का कर्प-
बृक्ष लिखा है'। इस अगाध पारिडत्य के कारण दी पाणुड्यराजा को
इनकी जुदाई पसन्द न थी, फिर भी सुनिगण न माने श्रौर उन्होंने
एक एक विपय पर दश दश मुनि्यो क! विभाग करके अपने जीवन
के श्नुभव का सार-स्वरूप एक एकर पद्य ताड्पच्र पर लिखकर वरँ
छोड़ दिया और चुपचाप चल दिये ।
पारुङ्यपति को जव इस वातत का पत। लगा तो उन्होंने क्रोधा-
वेश में आकर उन ताइपत्रों को बंगी नदी सें फिकवा दिया, किन्तु
प्रचाह के विरुद्ध जब ये चार सो पत्र किनारे पर आ लगे तव राजा
की ही आज्ञा से ये संग्रहीत कर लिये गये ्यौर उन्हीं की आज्ञा से
वतमान व्यवस्थित रूप हुआ |
मूल नलदियार में एक स्थल पर 'मुत्तरियर” शब्द आया हैं,
जिसका अथ द्ोता है 'मुक्ता नरेश” अथोन मोतियों के राजा । प्राचीन
समय में पारड्य राज्य के चन्दरगाद्दों से वहुत मोती निकाले जाते थे ।
जिनका व्यापार केवल भारत में ही नद्दीं किन्तु रोम तक होता था |
इसी कारण पाण्ड्य राज्य के अधीश्वर सो तियों के राजा कहलाते थे ।
इस प्रकार “मुत्तरियर” शब्द ही उक्त कथा क़े ऊपर प्रकाश डालता हैं ।
कुरल 'ओोर नलदियार के बनते समय तामिल जनता के ऊपर, जैनधर्म
की इतनी गहरी छाप थी कि बद्द धर्म का नामकरण 'ब्रम” श्रन्
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