कुरल काव्य | Kural-kavya

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Kural-kavya by गोविन्द राय जैन - Govind Ray Jainश्री एलाचार्य -Shree Elachary

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गोविन्द राय जैन - Govind Ray Jain

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श्री एलाचार्य -Shree Elachary

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ १४ ] जब चन्द्रगुप्त मौर्य के समय उत्तर भारत में १२ वर्ष का भयंकर दर्मिक्ष पड़ा तच आठ हजार सुनियों का संच अन्तिम श्रतकेवली भद्रवाहु के नेदत्व में दक्षिण भारत गया । ओर वहां जाकर पाण्ड्य नरेश के रक्षण में ठहरा । पाठक ऐतिहासिक शोधों से देखेंगे कि दक्षिण में पारइ्य, चोल और चेर नामक वड़े सुद्द्‌ ओर समृद्ध राज्य विद्यमान थे । अशोक के शिलालेखों में इनको पराजित राज्यों की श्रेणी में न लिखकर सित्र राज्यों की श्रेणी में लिखा गया है । दुर्भि का समय निकल जाने पर इन मुनियों ने उत्तर भारत लोट जाने की जव चच चलाई तव स्नेही पाण्य नरेश ने उनको स जाने का ही आग्रह किया । इस समय इन मुनियों के प्रधान नेता विशाखाचाय थे, जिनकी स्मृति सें आज भी दक्षिण में विजगापटस अथोत्‌ विशाख पटम अवस्थित है । विशखाचा्यं को अन्य लेखकों ने ज्ञान का कर्प- बृक्ष लिखा है'। इस अगाध पारिडत्य के कारण दी पाणुड्यराजा को इनकी जुदाई पसन्द न थी, फिर भी सुनिगण न माने श्रौर उन्होंने एक एक विपय पर दश दश मुनि्यो क! विभाग करके अपने जीवन के श्नुभव का सार-स्वरूप एक एकर पद्य ताड्पच्र पर लिखकर वरँ छोड़ दिया और चुपचाप चल दिये । पारुङ्यपति को जव इस वातत का पत। लगा तो उन्होंने क्रोधा- वेश में आकर उन ताइपत्रों को बंगी नदी सें फिकवा दिया, किन्तु प्रचाह के विरुद्ध जब ये चार सो पत्र किनारे पर आ लगे तव राजा की ही आज्ञा से ये संग्रहीत कर लिये गये ्यौर उन्हीं की आज्ञा से वतमान व्यवस्थित रूप हुआ | मूल नलदियार में एक स्थल पर 'मुत्तरियर” शब्द आया हैं, जिसका अथ द्ोता है 'मुक्ता नरेश” अथोन मोतियों के राजा । प्राचीन समय में पारड्य राज्य के चन्दरगाद्दों से वहुत मोती निकाले जाते थे । जिनका व्यापार केवल भारत में ही नद्दीं किन्तु रोम तक होता था | इसी कारण पाण्ड्य राज्य के अधीश्वर सो तियों के राजा कहलाते थे । इस प्रकार “मुत्तरियर” शब्द ही उक्त कथा क़े ऊपर प्रकाश डालता हैं । कुरल 'ओोर नलदियार के बनते समय तामिल जनता के ऊपर, जैनधर्म की इतनी गहरी छाप थी कि बद्द धर्म का नामकरण 'ब्रम” श्रन्‌




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