कामायनी की टीका | Kamayani Ki Tika

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Kamayani Ki Tika by तारकनाथ बाली -Taraknath Bali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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र.) मनु चिस्ताप्रस्त ईं इसलिए, उन्हें सर्वश्न चिन्ता ही दिखा देती ३ | चिन्वा पिष हुए विष की छोटो-सी शदर के समान दे । जिस प्रकार थोड्ा-सा विप मी शरीर के भीतर पहुँचकर मनुष्य फो दग्ध करने लगता रै, उसी प्रकार चिन्ता मी मनुष्य को व्याकुत कर देती दे | तू श्रमर-बीवन को भी बूढ़ा कर देने वाली है । तेरे कारण बलवान पुरुष मी अझस्यन्त झल्प समय में द्धा के समान निर्षश दो बाते इं । भर दू तो बिल्कुल भददरी हे । किसी की कुछ सुनती ही नहीं । चिन्तित ब्यक्ति को कोई दूसरा कितना ही क्मों न समभाएं किन्तु उसकी चिस्ता बूर नददों दोती । इसीलिए, चिन्दा को बहरी कहा दे । (घरी पाप] ~~ शब्दां -भ्पापि-शारीरिक रोग । सूत्र घारिणीन्नम देने वाली । झाधित्मानसिक राग । मघुमयन्ञ्याकपर । झमिशाप--शाप । धूमफेस्पूछ- दार तारा जिसका आकाश में उदय होना श्रशुम माना चाता र । पुरमसि पुम का संघार, रमणीय जगत । माषार्थ- हि चिन्वा | तू विविघ शारीरिक रोगों को बम देती है! सदैव चिन्तित रहने घाला ष्यसि रोगी हो नाता दे । तू इदय को पीड़ा देने थाली है ।सू आकर्षक शाप दे । तेरे द्वारा ग्रस्त दोफर मनुष्य ब्याकुल रहता है इसलिए तू शाप दे । किन्द चिन्ता द्ोने पर मनुष्य कर्म पथ पर इदता से आरूद होता है । इसलिए, तू झाकपक मी दे । तू दृदय रूपी आकाश में पुच्छ तारे के समान उदित दोती दे । जिस प्रकार झाकाश में पुच्छु्त तारे के दिखाई देने पर संसार का झमगल होता दे | उसी प्रकार पथ तू हृदय में उप ती दे तो मनुप्य के लिए म्मथा और पीड़ा शेकर ही श्राठी दे | तू इस पुण्य से भरे हुए संसार में एक सुन्दर पाप के समान दे । जिस प्रकार पाप पीडक होता दे, उसी प्रकार तू मी व्यया देने वाली दे | किन्तु तेरे कारण लीवन में गति आती है इसशिए तू सुन्दर मी दे | ध्मप्ुमय झमिशाप” तथा सुन्दर पाप मे विरोधामास है जो छामायादी कला की एक प्रमुख सिशेषता है । पसे प्रयोगो से कषिता मे विशद्रंणता आती दै, 'हुदयन्गगन”--रूपक । घूमकेस-सी--ठपमा ! ।




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