भारतीय प्राचीन लिपिमाला | Bharatiy Prachin Lipimala
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
316
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about महामहोपाध्याय राय बहादुर पंडित गौरीशंकर हीराचन्द्र ओझा - Mahamahopadhyaya Rai Bahadur Pandit Gaurishankar Hirachand Ojha
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका.
बनमें से कइ एक की सचियां भी छुप गई हैं. जनरल कनिंगहाम ने अपने संग्रह के भारतीय
प्राचीन सिक्कों की चार जिल्दें! और लडन के ब्रिटिश ग्यूज़िडम् ने छापने संग्रह की तीन
जित्दें छुपवाह. ऐसे ही पंजाब ग्यूजिअम ( लाहोर ), इंडिअन म्यूजिअम झादि के संग्रह के
सिकों की चित्रों सहित सचियां छप चुकी हें. हडिअन पैरिकरी, यारि लोजिकन्त स्वे को भिन्न
मिन्न रिपारों , एशिझाडिक् सासाइटिया के जनलों तथा कह स्वतंत्र पुस्तकों में भा इट् 1नक् प्रकट
हुए हैं.
जब सीर अंग्रेज़ी की तरफ से प्राचीन शाध का प्रशंसनीय काथ टोनि लगा तथ लने
एक विद्या्रमी देशी राज्यों ने भी अपने यहां प्राचीन शोधमंवरशव कायालय स्थापित क्ये भाव-
नगर दरबार ने अपने पाइतों के हारा काडि श्राचाड़, सुजरात और राजप्रताना के धन रिलालेस्व
छोर दानपत्रों की नकलें तथ्यार करवा कर उनमं से कहे एक 'भवनगर पार्चनशाधन्रह
( माग प्रथम ) और ' सावनगर इतरिक्रिपशन्स ` नामक पुरतसामेप्रज्ट कयि. कारटि्ःत्रःड कर पालि-
रिकल एजेंट कनल वयोटमन का प्राचीन वस्तुओं का प्रम देव कर कारठिआवाड़ # राजा न मिल
कर राजवोट में 'वाटसन र्यूंज़िअम स्धापल 1 स्या जसम कड प्राचान ।शलालस्वया, दानपत्रा, 1सछा
चछर पुस्लकां आदि का अच्छा संघ्रह हे. मारग्मर राज्य न पमाचस्तुर्यका सग्रह किया इतना हो
नहीं तु प्राचीन शाध के लिय श्रार्ि्यालोजिक्ल विमाग स्थापित कर अपने विरत॒न राज्य में
सिलनेत्रास हजारों शिनालग्दां तथा ताम्रपन्ां को ' एपिय्ाफिया कन।रिकाः नाम प्रध्माला की
कद बड़ों बड़ा ज़रदा मे प्रामद्ध कया आर इ. से १८८१ स पन प्राचन शाध विमाग > सालाना
रिपोरें भी, जो बड़ महत्व की हैं, छुपाना आरंभ किया. चय। राज्य ने प्राचीन वस्तुझओं का अच्छा संग्रह
किया जिसके प्राचीन शिलालेग्व और दानपत्रों को प्रसिद्ध पुरातत्ववत्ता डॉ. फोजल ने ' एँवंट/कटीज़
झाफ़ें दी चंबा स्टेट ' नामक मूल्य ग्रंथ में प्रसिद्ध कर प्राचीन लिपियों का अभ्यास करनेवालों के
लिये शारदा लिपि की बड़ी सामग्री एकश्रित कर दी. ट्रावनकोर तथा हैदराबाद राज्यों ने भी झपने
यहां वैसा ही प्रशंसनीय काथ प्रारंभ कर दिया है उदयपुर ( मेवाड़ ), कालावाड़, ग्वालियर,
घार, पाल, बड़ौदा, जूनागढ़, झावनगर आदि राज्यों में भी प्राचीन बस्तुअं के संग्रह हुए हूं और
देते जति.
हम पकार मकार शग्रजी की उदार साया, अौर एशिश्चारिकः सामादहयियो, देशी राउयो. साधा-
रण गृहस्थं तथा विद्वानों के श्रम से हमार यहां के प्राचीन इतिहास की धुत कुछ मामसरी उपतप्ध हृ
है जिसमे नंद, म्य, ग्रीक, शानकणी ( झाधघिभूत्य ), शक, पाधिडन , कुशन, सुन्नप, उभीर, गुप्त, हण,
यांद्धय, घस, लिनिल्वि, परिब्राजक, राजाघितुर्य, बाकाटक, सुस्वर ( मोग्वरी ) , मेत्रक, गुहिल, चापो
स्कट ( चावड़ ), चालुक्य ( सालकां ), पातहार ( पाड्हार ), परमार, चाहभान ( चाहान ), राट्रकूट
राठोड़ ), कच्छपघात ( कछुवाहा ), तोमर ( तंवर ), कलचुरि ( देहय ), श्रङ्कटक, चद्राच्रय ( चदलं )
यादव, गजर, मिहिर, पाल, मन, पल्लव, चोल. कदय, शिलार, सेद्रक, काकनीथ, नाग, निङुम
बाण, मत्स्य, शालंकायन, शाल, मूषक, चलतुधवणे ( रेदि) अदि अनेक राजवंशं का बून कुछ
कृत, उनका वशावाल्या एव कं एक राजाओं का निश्चित समय भी मालूम होता है इतना ही नहीं,
कितु अनेक विद्वानों, घम,चार्यो, धनाढ्यो, दानी, दीर भादि प्रसिद्ध एरुषो के नाम, उनके घृत्तांत तथा समय
1 लय सपना स्थिर पयवथथयनयसय मय न
१ 'कॉइन्स श्रॉफ पनश्यंट इंडिया ', ' कॉइन्स ऑफ मिडिएवल दडिश्रा ; ' कॉइन्स आफ दी इंडोसीथिश्रन्स और
*कॉइन्स अष दी लेटर इंडासिथिधन्स ^
'दी कॉइन्स श्रॉफ दी प्रोक एंड सीधिक् क्रग्ज्ञ श्रो वाकरिश्चा पेड शडश्चा दौ कॉइन्स अआ दी आान्घ डाइ
लस्टी, दी चेस्टेन झन्नप्ल, दी जैकूटक डाइनेस्टी पंड दी बोधि डाइनस्टी '. झौर 'दी कॉइन्स ऑफ दी गुप्त डाइनस्टीज़'
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