सूफी काव्य में प्रयुक्त पर्यायों का अनुशीलन | Sufi Kavya Men Prayukt Paryayon Ka Anushilan

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Sufi Kavya Men Prayukt Paryayon Ka Anushilan by रामाधिन सिंह - Ramadhin Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गया है । इसके अतिरिक्त साहित्य क्षेत्र में अभिव्यक्ति की शक्तिमत्ता और सजीवता के लिये पर्यायों के महत्वपूर्ण योगदान को उपेक्षित नहीं किया जा सकता | शब्दों के प्रभाव और शक्ति से अवगत साहित्यकारों ने प्रसंगानुरूप उपयुक्त शब्दों के प्रयोग द्वारा अपनी रचना को अधिकाधिक प्रभावशाली बनाया है। पर्यायों की यह अनुपेक्षणीय महत्ता सभी भाषा वैज्ञानिकों को गहराई में जाने के लिये प्रेरित करती है। इसी प्रक्रिया में जो सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रश्न सामने आता है वह है पर्यायौ के श्रोत का। शब्दों की समानार्थता के प्रसंग में इस प्रश्न का उठना स्वाभाविक ही है कि एक भाषा में एक ही अर्थ को अभिव्यक्ति देने वाले अनेक शब्दों का आविर्भाव क्यों होता है ? प्रत्येक भाषा में निरंतर विकासशीलता की स्थिति देखी जा सकती है। भाषा की इस अनिवार्य प्रक्रिया या विशेषता के कारण उसमें अनेक परिवर्तन लक्षित होते हैं । उसके शब्द भण्डार मेँ अनेक शब्दों का आगमन ओर लोप। आरम्भ मे भाषा मे एक भाव की अभिव्यक्ति का द्योतक एक ही शब्द होता है, किन्तु धीरे-धीरे उसके प्रयोक्ताओं को, चाहे वे सामान्य व्यक्ति हों या प्रतिष्ठित साहित्यकार, ऐसा अनुभव होने लगता है कि उनके विचारों की सटीक अभिव्यक्ति या अभिव्यक्ति के विभिन्‍न सूक्ष्म पक्षों के स्पष्टीकरण के लिये प्रस्तुत शब्द अपर्याप्त है | ज्ञानवृद्धि के साथ-साथ वह एक वस्तु या व्यक्ति के विभिन्‍न गुणों और विशेषताओं का परिचय प्राप्त करता है। जिस प्रसंग मं वह जिस वस्तु व्यक्ति स संबद्ध जिस क्रिया कलाप का वर्णन करता है उसी के अनुरूप शब्द का प्रयोग भी करना चःइता है | जैसे नर के स्त्रीलिंग रूप मँ सामान्य प्रचलित शब्द है- नारी | परन्तु जब वक्ता या ठेखक उसकी कमनीयता पर विशेष बल देना चाहता है तब उसके लिये कांतः का प्रयोग करता है ओर यदि यौवन आदि गुणों का सप्रषण अभीष्ट होता है तो प्रयोजन के अनुरूप 'प्रमदा का व्यवहार किया जाता है।




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