शाहमाना | Shahamana

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Shahamana by रामचन्द्र श्रीवास्तव -Ramchandra Shrivastav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1 शुगर कक के ~ १-* य + = य्‌ ¢ राहनामा-- प्रथम भाग ध) सेना के हतोत्साह होने के कारण पराजित हो भाग निकला. | उसके पलायन करते ही ज्ञोहाक ने ईरान के सिहासन पर - अपना अधिकार जमाया । सिंहासनारूढ़ होते ही उसने घोषणा की कि जो व्यक्ति जसशैद्‌ को बन्दी बनाकर लाएगा अथवा उसका चिह्न बताकर उसे बन्दी कर. वाएगा उसे राज्य-कोष से झ्रतुल घन दिया. जाएगा, और यहीं तक नहीं, उसे राज्य मैं पदाधिकारी भी नियुक्त क्रिया जाएगा | ज़ोहाक की इस घोषणा की चरचा भू-मण्डल के कोने-कोने में होने लगी गौर सभी लोग जमशेद्‌ की खोज सें रहने लगे । इ्पर जमशेद रण-भरूमि से भागकर पत्तों में जा छिपा । जब उसे इस घाष्णा की सूचना सिली तो वह प्राणमय से लोगो की दृष्टि बचाता मरूस्थलों एवं पवतों को लॉघचता अनेकानेक विपत्तियों से साम्सुख्य करता जाबुलिस्तान जा पहुँचा । नगर में प्रवेश करने से पूर्व उसने छुम-वेश धारण कर लिया | इस नगर के शासक के एक पुत्री थी जो रूप-लावण्य में परियों के सदश थी । उसके स्रंग-प्रव्यंग की रचना जै्े कि स्वयं विधता ने ही की हो । उसके नयन-वाणों द्वारा वेधित पुरुष की संख्या अगणित थी | इसके अतिरिक्त उसमें एक और भी गुण था, वह सोदयं की प्रतिमा होने के साथ ही चरि्डिका का साक्षात अवतार थी । उसके पिता ने उसे समस्त रण-कौशल की शिक्षा दिलवाई थी | फलतः जब बह संग्राम-भूमि में प्रवेश करती तो जिधघर घूम जाती, उधर शव ही शव सू-लुंडित होते मिलते । यह उसी की बुद्धिमत्ता एवं रण-कौशल का परिणाम था कि उसके पिता ने सनोछर जैसे प्रबल आक्रमणकारी को पराजित कर दिया था । इसी कारण तो जाबुल नस्श उसका पाणि.गरहण किसी के साथ न करता था । वैसे उसे सभी प्रकार की स्वच्छन्दता प्रदान कर दी गई थी | इस राजऊुसारी के साथ उयोतिविद्या मे दत्त थी। एक धाय थी, जो बड़ी बुद्धिमती तथा दिन उसने राज्ुसारी से कहा कि {449 ध 6. {2 94. 3 किट | ~ ८. अतसाइलीधियकि लि किनिदिसविरि साला




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