हिंदी काव्य में प्रकृति | Hindi Kavya Mein Prakriti

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Hindi  Kavya Mein Prakriti by रामचन्द्र श्रीवास्तव -Ramchandra Shrivastav

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रामचन्द्र श्रीवास्तव -Ramchandra Shrivastav

Add Infomation AboutRamchandra Shrivastav

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
काव्य ओर प्रकृति का सम्बन्ध ३ में ही काव्य-सरिता का रूप स्पष्ट होता है । पाश्चात्य विद्वानों ने बाह्य ओर अन्तर प्रकृति के अनुरूप ही दो सत्ताएँ मानी हैं। अपने से प्रथक जितनी सत्ताएँ हैं. उन्हीं का खामहिक नाम संसार है । उनके अनुसार हम संसार का ज्ञान दो अकार से प्राप्त करते हैं। एक निश्चित अथवा नियत क्षण में संसार का केवल एक विशेष भाग ही हमारी बाह्य और आन्‍्तर सत्ताएं इन्द्रियों के सम्मुख आता है ओर तथा दृष्टियाँ उन्हें प्रभावित करता है। इनका हमें प्रत्यक्ष अनुभव होता है। इस विशेष भाग के अन्तगेत चर ओर अचर मू्त पदार्थ ही हो सकते हैं। यह एक प्रकार का अनुभव हुआ ओर इसी को बे जगद्दर्शन की बाह्य दृष्टि कहते हैं । जिन सत्ताओं का ज्ञान हमें इस प्रकार प्राप्त होता हे थे बाह्य सत्ताएँ कहलाती हैं। स्पष्ट है कि इनका अस्तित्व हमसे प्रथक्‌ होगा जैसे पुस्तक, लेखनी, ग्रह, द्वार, सुगन्ध, वायु, जल आदि । दूसरे प्रकार का ज्ञान हमें मानसिक बिस्‍्बों द्वारा होता है। हमारे मानस में बराबर कुछ बिम्ब आया जाया करते हैं। कभी तो इनका सम्बन्ध बाह्य सत्ताओं ( मुर्त पदार्थो' ) से होता है और कभी उनका स्वतन्त्र अस्तित्व होता है। यह दूसरे प्रकार का अनु- भव हुआ । इसी को जगद्दर्शन की अन्तट्ट ष्टि कहते हैं। इसी को हम मानस कक्ष कह सकते हैं। इस प्रकार की अनुभूत सत्ताएँ आन्तरसत्ताएँ कहलाती हैं | इनका भ्रस्तित्व हमारे अन्तस में ही होता है। वे हमसे ही उत्पन्न ओर हममें ही लीन होती हैं। उनका कोई गोचर-रूप नहीं होता और उनका अनुभव हमें मस्तिष्क, हृदय अथवा कल्पना द्वारा होता है। इनके उदाहरण राग, मनोबेग भाव, विचार, कल्पना चित्र आदि हैं ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now