केशव-चन्द्रिका प्रसार | Kashav-chandrika Prasar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
184
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बेडादनचर्गडिषा प्रसार १५
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दाइदाथ जतत = पीयत डे परो । विधया = (१) परते विहीना (र) धवा
मातर वृक्ष से हीन 1 यनी =वािग
भावाय नरा कोटं रने श्रटेति करा प्राग्पौ नहीं है, बेवल पीपत के पत्ते
ही नल है घोर जहाँ लेगल बटिवाएँ ही. घवा साम के वृझ से रहित है,
नाग्रं विषदा नरी है। ऐसे धद्धूस नगर ( भयोध्या ) को देस कर
बाधिराज विध्वामित्र बा मन मोहित हो गया ।
ध्रणकषार --पगिमिम्या।
शरोटा नागर नगर पपार महामोटतम मिव मे।
तृध्णालता बुठार मोम सयुद्र भगल्यमे ॥ २६॥
शम्दाधं -नागर दे घतुर । सहामोरतम = मोह् बै धने प्रन्पकार पैः लिश ।
(मर ही स््गूरय के समान ।
भां -उम मगर मे तमे धस्य घनुर प्राणी है जो मोड केधने प्रन्धकार
वो नप्ट बरते बे लिए सूप के समान हैं भौर जो छृप्णणा रूपी लता को काटने
थे लिए शुठार के समान भौर सोभ के समुद्र को सोखने को तु भ्रगस्त्य
भ्षि के समान हैं । ॐ *1
धलकार --रूपप धौीर उल्लेख का सकर ।
दोहा --विदवामित पवित्र मुनि, केशव बुद्धि उदार ।
देखत धोमा नगर को, गए राज दरबार ॥ ३० ॥
हाष्दार्थ.-पविध्र = पवित्र हृदय वाले ।
भावार्ष --कंगव बहते हैं कि पवित्र हृदय भौर उदार बुद्धि बाले
विश्वामित्र ऋषि (भ्रयोध्या) नगर की शोभा को देखने हुए राजा (दशरथ)
के दरवार में भाए ।
मासतों -तहें दरवारी, सव सुखकारी ।
कृत युग कैत, जनु जन वैते ॥ ३१॥
अ
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