सीताराम चौपाई | Seetaram Chaupai

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Seetaram Choipai by अगरचन्द्र नाहटा - Agarchandra Nahtaभवरलाल नाहटा - Bhawarlal Nahta

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भंवरलाल नाहटा - Bhanwar Lal Nahta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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व है 3 वहत दै सम्पूणं सचना नो खण्डों मे विभक्त है। जिनका नामकरण कृवि ने प्रत्येक खण्ड के अन्त में किया है । महाकाव्य सर्म वद्ध किया जाता है। यह र्वना अनेक खंडों मे लिखी गई दै और वहत बडी दै! जीवन का सर्वांगीण चित्रण हमें इससे मिलता है। नायक स्वयं राम दे जिनके वीरत्वमें धीरत्वमें सन्देह का कोई स्थान नहीं । घृत एेतिद्यसिक है दी जिससें पीछे कवि क्ता महदुदेश्य राम गुणगान स्पष्ट दै। छन्द की विविधता; रसों का पूर्ण परिपाक; यह सब इस रचना को प्रबन्ध काव्य की कोटी में छा खड़ा करते दे । कवि ने स्वय इस ओर सर्गान्त मे संकेत कर दिया है--इतति श्री सीता राम प्रब्थे ।” इस प्रकार प्रस्तुत अन्थ एक चरि- तात्मक भ्रवन्ध काञ्य सिद्ध होता है जिसमे अनेक का सम्बन्ध सूत्र नायक ( राम ) की कथा से जोड दिया गया है । चौपा छन्द की अधिकता के साथ-साथ अन्य छन्द भी प्रयुक्त किये गये हैं अत- चौपाई की शप्रधानता होने पर भी एवं 'प्रबन्घ' के पर्याय के रूप में भी (उपः नाम रखा गया है । न्थ का प्रारम्भ ग्रन्थ का प्रारम्भ कवि ने परम्परानुसार मगङाचरण से किया है । स्वस्तिधी सुख सम्पदा, दायक अरिहत देव ८ तर तर निज गुख्चरण कमल नमु, चरिण्ड तत्व दातार रद जद ८ समरू सरसति सामनी, एक करू अरदास 1




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