साहित्य - समीक्षाञ्जलि | Sahity Smeekshanjali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1, खाय गमीनाञ्चलि ग्रन्थ में 'रमणीयार्थ . प्रतिपादकः शब्द फल्यम्‌ + र्थ रमनीय चरथ बरक करना क़ान्य का श्रनिवाव्य लक्षण मानते है । इसी माना श्रनुचाद, चरतु जगनायदात्त वीर ८० ने साहित्य रदाकर में लय वाक्य रमणीय जा काव्य कायै मोयः किया ई । । साहित्पद्पणुकार विश्वनाथ जी प्स्मातयकं वाक्यं काव्यम्‌? कद्‌ कन्‌ स्ख श्र्ीत्‌ लोकोत्तर श्रानन्द जिस कपन में प्राप्न दौ उसी को ह कन्ति मानते हैं | ५ भाषा के घ्रान ने दसी ्मन्तिमि मत को प्रायः झंगीकार किया ह। इसग्त मोद्दानी ने भी शेर दर श्रसल वहीं है दसरत सुनते ही दिल में जो उनर जाथ' कह कर कविता को दृदय का विपय माना है । बह काव्य ही नहीं जो दय मे लोकोत्तर श्ानन्ट की स्फूति मे जगा दे, जो. आताश्ी को लोट-पोद न कर दे । जो नयी भावना का झंयुर खड़ा ने कर दे, जिसमें चमत्कार सा श्राकर्षण शनि न हो । पाइ्चात्य बिद्वानों ने भी कपिता के स्वल्प र पथ्‌ भाव दशयि दै । य स्थानाभावके कारण संदोप में दिये जति हं :-- जानसन--कविता पयमय निवन्ध है 1 मिल्टन-कविता वह कला दै जिसमें कल्पना-शक्ति विवेक कौ सदायता लेकर सत्य श्रौर्‌ श्रानन्द्‌ का परत्पर संमिश्रण करती है! श्ररि्टारल--प्राद्शं चिर को गी कविता कते हैं । शोली--क्विता विश्च के रुत सन्दय-भरुडार की काकी कदाती दै 1 ` वडस्व्थ--णान्त 'एकान्त सण में श्रनुमृत्त मनोभाव ही कान्य १ । द्रसंख्य आ्आचायां शरोर कविय के मत दसं सम्बन्थं म एकन किये ला सकते है परन्तु प्रधानता की दि से बानगी के सूप मं उपयुक्त क्ेपतः उप- स्थित किये गये हैं ।'काव्य का एक झंश गीतिकान्य ई जिसकी मदमा काव्य- रत्र में अनोखी ही है । घ्रजभाषा के साहित्य-सूर्य यूखास ने इसी शैली को दपनाया है | श्रष्टछाप के कवियों में सूरदास का स्थान श्रजर-झ्मर है । उनकी सूक्तियाँ केवल हिन्दो-माषा के साहित्व को ही अलंकृत नहों करतीं प्रत्युत्त चिश्व-साहित्य में सदा-सवदा उतुन् झासन पर विराजमान, रह कर समग्र भाषाओं के साहित्य को गौरवास्वित करेंगी । सूर का वात्सल्य रतत तो य््रपू्ं ही है । उनका उपालंभ दिलाने का रूप निराला ही दै। विनय में उनका दैन्य झीर दिटाई दोनों ही दर्शनीय हैं । रूप और चविरद-वर्णन श्रप्रतिम है| कला की दृष्टि से तो इनका कददना हो क्‍या है । उदपेक्षात्रीं, उपमाओ्ओं तथा




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