भारतीय भाषाशास्त्रीय चिन्तन | Bhartiya Bhashashastriya Chintan

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Book Image : भारतीय भाषाशास्त्रीय चिन्तन  - Bhartiya Bhashashastriya Chintan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भारत दर मापा वज्ञान टू हा क = = क ॐ /#+ क इसीलिए प्राचोन मार्तो व्याकरग्विक्त अल्यरयना न था वाद्धकता का वहा स्तर दप्टिगोचर होता है जो अन्य चास्वों या दर्जनों में दप्टिगोचर होता है तथा व्याकरणिक .दष्टिगोचर होता हू जा बन्य चाहता या दाता मे दोप्टगावर हाता है तथा रक =---> --~, ~~~ ~~ ----- = मौलिक ~ वन्य = > 49 > त्रव्यवन, चो साक्षात्कृत विदः कनो यथावत्‌ सुरक्षित रखने के मोलिक प्रयोजन से प्रेरित हो १ गम की य ननापा की उपलच्वि ५ + कर प्राइम हुए य, राग चल कर्‌ सारता ननापा का उपलाव्य के अन्यतम रूप गन कद्ध {न > 3 त च्टनिजान्यी ह विदेचन दा श्र प्रसिद्ध हुए 1 सामान्यतः: वंदिक् मापा का कुछ व्वनिशञास्त्रीय दिवचन (7007611८ ०९5{:००)} के ताय-ताय प' एवं 'वाक्य' घास्त्रीय (04० फ000ॉ०्डा & इष्णदततत्वा) अध्ययन देद की संरक्षा के लिए पर्याप्त माना जा सकता हू, परन्तु वह मात्यता पश्चिमी ------ <~ ~~ ------~ = सकती टन ठटद्धि < -< ~~ ~ ए ~न इसीलिए ~ जात = दष ~ जगत न्त्ान्वरमव ह्य सक्ठा टः हन्द दुषद-जादा क लिए नहा 1 इन्व्‌ वहंजयाव ~ इ क पटल ~ सावर्ण पद्य श्व्याकरण' के लिये व्याकरण बनाने में प्रदत्त हुए थे । व बहुत पहल दा सावार < [~ =-= विषतो > न आगे न म घ्वनिः घ्डाचक दिनषदचाद्रा क उामाच्यप उल्तद्धा के बहुत आग) दनक दृष्टि से संस्कृत ध्वनि- व्यवस्या (०0००1०९४ } का च्वनिमात्मक वर्सन (ए0णल१८ ०९८5०४००} करने सगे ये 1 क्योंकि उनको झपनी भाषा की माधा-वज्ञानिक संरचना ( 1.्टणंऽ110 ऽधरपलापा€ ) कर ञः थे संन्क्षा ही अभीप्ट श्रौर उदिदप्ट थी (आदवुनिक श्रयं में) का सरक्षा हो अमाप्ट शोर उादूदप्ट था । इसके पश्चात भारताय दयाकरो का व्यान भाषा कैः च्पिम (०९) तथा वाक्य-संरचना (31256) के श्रव्ययनं पर विशेष च्य ये केन्ित र्हा, त्या सत्करत--म्ापा का वेज्ञानिक- विश्लेपण तथा वर्णुद इस पूर्णता के साथ किया कि इसे मात्र “पवित्र-वेदों की संरना के घारमिक प्रयोजन की <~ = कद सम बाय >~ = कदा वास सी किया जा सकता पत्त क चय किये गये कार्य के रूप में कदापि स्वीकार नहीं किया जा सकता 1 ~-->~ पे लोग एता मानते हैं ~ चरर रचित समस्त ब्याकरणों > > 4 कुदध लोग ऐसा मानते हूँ, कि हिन्द वेयाकरणों द्वारा रचित समस्त ब्याकरणों में सर्वे- == र्‌, पा निनि का व्याकरण इतना > कारण केवल (ग ॐ = ष्ठ पाछिनि का व्याकरण इतना उत्तमथा कि उसके कारण केवल “वदिक भाषा” के न पा का समाप्त हो गया ् रीर अंततः: उनका ~>) ~> गया त्या मा व्याक र्य वा प्रचलन समाप्त हा गया श्रार अततः उनका लाप हा गया, तथ ण्च घ्वनिः एवं कोश = बचे हुए (1 जिनमें टिप्स वैदिक भाप एत दुद 'घ्वान-शास्नाय श्र एवं कोश श्रादि द्वा बच हुए है; जितम कवल वादक 1 २ | भ नी च ~~ विवेचनं परन्त वष्टो = 22 मान्यता >~ विपय न मका करना <~ उचित न का विवेचनद्र्रा है! परन्त विद्वानों की इस न्यता के विषय म ज्का करना दा उचित होगा । वस्तुतः पाणिनि के तमयर्मेदही वार्मिकता' से मुक्त श्रौर स्वतंत्र हो गया था. तथा जन्नाक पहुल कहा जा चुका हू उसका व्याकरण 'ब्याकरण के लिए लिखा गया लगता है कि जे पाणिनि का मूल उदज्य किसी वामिकता के श्राग्रह से वैदिक मापा का वर्णन करना था ही नहीं,* वह श्रौर ही कुछ करना चाहता था । वह संस्कृत भापा के उस मानक रूप का वर्णन करना चाहता था जो श्रागें एक सर्व-सामान्य भाषा के श्रादर्श रुप में प्रतिथ्ठित हो सके । पाणिनति के पञ्चात्‌ ह्वा सस्कृत नापा च कवत भारत का एक सब सामान्य राप्ट्र-नापा सिद्ध हुई थी, वर यह समूचे एशिया में एक श्रंतर्देशीय भाषा के रूप नं प्रसिद्ध चर्‌ प्रतिष्ठित हुई ) 1 वास्तव में श्रमी तक यह एक उलभी हुई समस्या ही है, क्योंकि पाशिनि ने स्वयं झपने व्याकरणशास्त्र के प्रवोजन के विपय में कुछ मी नहीं कहा । ऐसी स्विति में यह भी सत्य हो सकता है कि जिस मापा का रूप-वर्णन पाणिनि ने कर दिया, वहीं उसके कारण, भारत की एक सामान्य साहित्यिक मापा सिद्ध हो गई । यहाँ ९ इस समस्या के विपय में विशेष कुछ ओर कहने की श्रावश्यता नहीं है, परन्तु इस बात का




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