तर्क भाषा | Tark Bhasha

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Tark Bhasha by पं. श्री रुद्रधर झा - Pt. Shri Rudradhara Jha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ग्रमाणजक्षणमू ] तत्त्वालोकविराजिता 1 ७७ स्वम । लकितस्थ लन्षणमुपपते न वेति विचार: परीक्षा । तेनेते लचणपरीक्षे अ्माणादीनां तत्त्वज्ञानाथ कतंव्ये | (१) ममाणानि अमाणमू १. तत्राइपि प्रथममुदिप्रम्य प्रमाणस्थ तावज्लचणमुच्यते, प्रमाकरण धारणघमंवचनमिति । सजातीयविजातीयव्यवच्छेटों व्यवददारध्र लक्षणार्थः सावा- रणघर्मचचनेन नोपपद्तेडत | श्यसर्वदत्ति- त्वमू । तथा चाकाशस्यासर्वब्रत्तित्वात्तत्रातिंम्याप्तिरत श्ाइ--घर्मेति | धर्मत्वघ ग्रत्तिमत्वमू । एवघाकाशस्या ताइशधर्मत्वाभावान्न तत्राति- व्याहिरित्याशयः ॥ श्सम्भवाव्यात्यतिम्याप्तिस्पदोपत्रयराहित्य॑ सब्र लक्षण श्रावश्यकमू । तन्र लदघ्च्यतावच्छेदकब्याप फौमूताभावधर्तिय्रोगित्वम श्सम्भव- । लद्यतावच्छेदकसमानाधिकरणात्यन्ताभावप्रहियोगिलरयू श्व्याततिः । लच्यतावच्छे” दकसामानायिकरण्ये सति करण्यम्‌ श्रतिन्याप्ति, 1 श्रत एवं ताइशदूपणश्रयरहितं तदुदाइरणमाद-- यथेति । सासनादीति-श्रत्रादिना 1 अय परीक्षां लक्षयति- लनितस्प्रेति । देवुना प्रमाणेति सत्रें उद्देशमात्र॑ करत, लक्षण परीक्षे त्ववशिष्टे तेन कारणेनेत्यथ: । केचितु-““बेन कारणेन प्रमाणेतिसत्रेणोदेशे कृते5पि लक्षणपरीक्षयोरकृतयोः श्रमाणादीना सम्यगकान॑ न. सम्भवति तेन हेतुने- त्ययः” इति वद्न्ति । सचापि--प्रमाणादावपि, प्रमाणादीना लक्षणादौ क्तब्प्रेपि । ग्रथमसिति--सचकारगौतमेनेत्यादि । तावत--प्रथमम्‌ । ययोदेश लक्षणत्या- जो सारनादिमस्व, चद उसका दे । जो ठक्षण, चदद उचित में उपपन्न होता या नहीं, इस तरद का जो विचार उसे परीक्षा कदते हैं, जेसे गोफा जो सास्नादिमच्च उछण है, चद्द गोसें उपपन्न होता या नहीं, इसतटर का जो विधार, चदद है परीक्षा । यथपि श्रमा णादियोंकि तर्वकों जाननेके लिये उनके-उद्देशा, शीर परीक्षा, ये तीनों कर्तव्य हैं, तथापिं प्रमाणादियोंका उद्देदा “प्रमाणप्रमेय० इस सूचमें दी कर चुके दूँ, इसलिये उनके शरीर परीक्षा दी कर्तव्य हैँ ॥ तब्रावि--उन प्रसाणादियोंमिं भी प्रथम उद्दिट प्रमाणका पढ़ले कहते हैं




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