स्त्री प्रक्षाल की निषेध | Istri Prachhal Nishedh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
182
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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हैं। इस दुरंगी नीति से श्रौरों को भलाई तो जाने दोजिये
अपना कल्याण भी नहीं कर सकते आरती में गोबर
रखने का विरोध भी न करना श्र इसे काम में भी लाना
इसका क्या मतलब है? यही न कि जो हमें मनमानी तौर
पर बतला दिया गया है उसी को अभी नहीं तो कालान्तर
में कभी न कभी तो मान्य करने के लिए अभी से कटिबद्ध हो
जाय। सोमदेव की श्ज्ञा को शिरोधायं करने वलि इस
बात का खुलाशा क्यों नहीं करते हैं. कि झ्यारती में गोबर
रखने की प्रथा क्यों नहीं कुछ कारण लिखा जाता तो और
भी विचार किया जाता । अस्तु त्रह्मचारी जी के लेख से स्पष्ट
मालूम होता है, कि शरारती के थाल में गोमय रखने का
विधान पोगापथी ग्रन्थों के सिवाय किसी भी शाषंप्रन्थ में
नहीं हे। ब्रह्मचारीजी महाराज दुबी जबान से यह तो
स्वीकार करते है, कि झारती की थाली में गोबर नहीं रक््खा
जाता है, फिर विरोध तो इतना ही रहा कि आपका अभिप्राय
हो “नहीं रक््खा जाता” है इस रूप में है आर दमारा यह
लिखना है कि “नहीं रक््खा जा सकता” है। इन उमय पक्षी
मान्यताश्मों में फके तो केवल “सक का ही है यदि
ब्रह्म्ारीजी श्रपने हृदय को उद्]र बनाकर केवल “सक” इन
दो भ्रक्षरोको ही स्वीकारमात्र करके शान्त रह जातेतो श्राज
इस व्यथ के बबडर को उठाने की आवश्यकता ही नहीं थी ।
सवेथा पथित्र बोतरागी स्नातक परमभट्टारक को प्रशांत
छवियों की आारतों के थाल में बास्तविक शूप मेँ श्रशुचि गोबर
कोने रखने के लिए भोलो जनता को समाने को ब्रह्मचारीजी
मददोदय गाली देना बताते हैं पर उसकी सफाई में यह स्पष्ट
लिखते हैं कि आरती में गोबर रखने बाले को “क्या पाप का
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