कथा एक प्रान्तर की | Katha Ek Prantar Ki
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
525
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about एस॰ के॰ पोट्टे क्काट - S. K. Pottekkat
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)1. एक रजिस्ट्री ख़त
अपने वड़े भाई एवं घराने के मुखिया .श्री चेनक्कोतु केलुक्कुट्टि के सम्मुख
वरिप्ठ उत्तराधिकारी चेनक्कोत्तु कृष्णन का सादर निवेदन :
मेरी पहली पत्नी कौ मृत्यु के वाद दूसरी शादी की वात तय करके पिछले
साल आपने ही मंगनी की रस्म पुरी कौ थी । लेकिन उस औरत को ब्याह कर घर
लाने के लिए घराने कं मुखिया होने के नाते आपने अभी तक कोद कार्यवाही नहीं
की । अपनी बूढ़ी माँ और छोटे बच्चों की परवरिश का भार मेरी नाक में दम कर
रहा है । विवाह के लिए कम-से-कम पचास रुपये खर्चे करने की सख्त जरूरत है ।
चूंकि इतनी रकम मेरे पास नहीं है अतः घराने की परम्परा के अनुसार विवाह का
इन्तजाम करने का दायित्व आप पर है । यदि आप अपना दायित्व पुरा नहीं करेगे
तो आज से पन्द्रह दिन वाद भँ उक्त रकम किसी ओर से उधार लेकर जरूरी कार्य
वाही करूंगा । उस स्थिति में मृञ्ञे या साहुकार को उक्त रक्रम देने कौ जिम्मेदारी
आपकी होगी । इस नोटिस के जरिए मै आपको इस बात की सूचना देता हूँ ।
भवदीय,
ह° चेनक्कोत्तु
तारीख : 21 फरवरी, 1912
कष्णन मास्टर का चेनक्कोत्त घराना उस पुराने शहर के मशहूर चार घरानों
में से एक था ।
कृष्णन मास्टर के स्वर्गीय पिता कुंजप्पु ब्रिटिश सरकारी सेवा में थे - एच.
' एस. कस्टम में एक चपरासी । उस ज़माने में वह अच्छा पेशा माना जातां था।
सरकारी मोहरवाली वर्दी, नियमित मासिक वेतन, असामियों से घूस लेने की
सुविधा, जहाज़ द्वारा आयात होने वाले सामान में से थोड़ा हड़प लेने की छूट इस
पेशे के मुख्य आकषेणथे । -
कुजप्पुं एक हट्टा-कट्टा, गो रा-चिद्टा नौजवान था । कुंजप्पु की कुल-महिसा
` ओरं व्यवितत्व देखकर ही गोरे साहब ने उसे कस्टम के चौकीदार की नौकरी दी
थी।
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