तक्षशिला | Takshshila
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
262
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ११ )
रह है । भारतीय संस्छति तथा भप्म एरिया संस्छृति भे दस्सकेनदर सें
भारत के भन्य नगरों फी अपेक्षा सभ्यता फा अधिक संचध रषा दहै ।
इसी छिए तक्षश्षिरा-काय्य का मुख्य रूप दकर छिखने का कष्ट साध्य
लोभ में सैघरण न कर सका ।
प्रस्तुत पुस्तक के विषय में मेरा चिचार है कि पसे काव्य के छिये
आज क के प्रचलित छायाचाद भौर रदस्यवाद सय शभ्दादम्बर के वन
भ भौर जमीन आमानं के क्व भिखाने वारी माव गाम्भीर्यं की धुर
झड़ी में सुचोधगभ्प कोई भी धारावाहिक पथ रचना नहीं हो सकती ।
मुक्तक के कठेषर को ही रददस्पवृद भपना सका है। इस श्रकार की
कचिता फेवर सहुशय परिश्रम संबेध है । इसीलिए प्राचीन छन्दों की
पोषक में और साधारण यम्य विषयः वर्णन द्वारा दस काष्ण का प्रणयन
हुआ है | मैं यह नहीं मानता कि मेरे चणेन में नवीनता है तथा भाव
प्राजछता के ऊँचे शिखर पर मैं पहुँच गया हूँ और जो कुछ है चष मेरा
अपना ही है । इस प्रकार का दात्रा तो कदासित थे से बढ़ा कवि भी
नददीं कर सकता फिर मेरी तो गिनती ही क्या 1 परन्तु इतना कहने का
साइस भवदय है कि वर्णन दौछी सेरी अपनी ही है । साथ ही विषया
जुसारी वर्णन में मैंने वत्तियों को उसी स्वरूप में रखा है । छन्दों की
परिभाषा का भी मैं पूर्णरूप से पक्षपाती नहीं हूँ । आावश्यकसाजुसार
रेने छन्द शाख के नियमों का उप्लंघन भी किया है. परन्तु उनमें
परिषतंन ण््तता नौर उच्तता से नहीं किया गया । ऐसा मेंते जान घुझ
कर दी किया है । कुछ भी दो पूर्ण रूप से मैंने छम्द दास तथा भकार
दाख का भाँख मीसकर पाकन नहीं किया । पाठक देखेंगे कि ऐसा करके
मैंते पुस्तक की उपादेयता कौ घटाया नी है ।
तक्षदिला इस नाम के सम्ब ध में में दो पात कह बना उचित
समझता हूँ । जब तक माय फोई भी काव्य देश या नगर के नाम पर
नहीं बना । प्राघीन प्रणाछी के अनुसार मुझे फिसी बंध था व्यक्ति विधेष
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