भारतीय ज्योतिष का इतिहास | BHartiya Jyotish Ka Itihas
श्रेणी : इतिहास / History, ज्योतिष / Astrology
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
291
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्रारभ्मिक बातें ७
या तारका-पुजो को चून लेना उनके लिपु स्वाभाविक था । ठीक-ठीक बराबर
दूशियो पर तारो का मिलना असम्भव था, क्योकि चन्द्रमाके मागंमेतारोका
जडना मनुष्य काकामतोथा नही । इसलिए आरम्भे मौटे हिसावसे ही वेष
द्वारा चन्द्रमा की मति का पता चल पाता रहा होगा, परन्तु गणित कै विकास के
साय इसमे सुधार हुमा होगा ओर तब चन्द्र मागं को टीक-ठीक बराबर २७ भागो
में बाँदा गया होगा । चन्द्रमा २७ के बदले लगभग २७१ दिन मे एकं चक्कर
लगाता है, इसका भी परिणाम जोड लिया गया होगा 1
चन्द्रमाके मागं के इन २७ बराबर भागो को ज्योतिष मे नक्षत्र कहते हैँ । साधारण
भाषा मे नक्षत्र का अथं केवल तारा है । इस शब्द से किसी भी तारे का बोध हो
सकता है । आरम्भ मे नक्षत्र तारे के लिए ही प्रयुक्त होता रहा होगा । परन्तु चन्द्रमा
अमुक नक्षत्र के समीप है' कहने की आवश्यकता बार-बार पडती रही होगी । समय
पाकर चन्द्रमा और नक्षत्नो का सम्बस्ध ऐसा घनिष्ठहो गया होगा किं नक्षत्र कहने से
ही चन्द्र मामं के समीपवर्ती किसी तारे काध्यान भाता रहा होगा । पीछे जब चन्द्र-
मार्ग को २७ बराबर भागों मे बाँठा गया तौ स्वभावत इन भागोके नाम भी समीप-
वर्ती तारो के अनुसार अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहणी आदि पड गये होगे ।
क्ग्वेद मे कुछ नक्षत्रों के नाम आते हैं जिससे पता चलता है कि उस समय
भी चन्द्रमा की गति पर ध्यान दिया जाता था ।*
# उदयकालिक सूये
'कौषीतकी ब्राह्मण में इसका सूक्ष्म वर्णन है कि उदयकाल के समय सूयं किस
दिशा मे रहता है । क्षितिज पर सुर्योदय-बिन्दु स्थिर नहीं रहता, क्योकि सूर्य का
वार्षिक मागं तिरछा है और इसका आधा भाग आकाश के उत्तर भाग मे पडता है,
आघा दक्षिण मे । कौषितकी ब्राह्मण ने सूर्योदय-बिन्दु की गति का सच्चा वर्णन
दिया है कि किस प्रकार यह बिन्दु दक्षिण की ओर जाता है, कुछ दिनों तक वहाँ
स्थिर-सा जान पडता है ओर फिर उत्तर की ओर बढता है।* यदियज्न करनेवाला
प्रति दिन एक ही स्थान पर बेरकर यज्ञ करता था--और वह ऐसा करता भी रहा
होगा--तो क्षितिज के किसी विशेष बिन्दु पर सूयं को उदय होते हुए देखने के
पश्चात् फिर एक वषं बीतने पर ही वह॒ सूयं को ठीक उसी स्थान पर (उसी ऋतु
में) उदय होता हुआ देखता रहा होगा । वस्तुत , क्षित्तिज के किसी एक बिन्दु पर
उदय होने से लेकर सूयं के फिर उसी बिन्दु पर बैसी ही ऋतु मे उदय होने तक कै
१, १०।८५।१३, २ १९२९३,
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rakesh jain
at 2020-11-22 13:39:32