पतन से उत्थान | Patan Se Utthan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| १४ | की क्रिया श्राचरण, पानी कानना, भोख्य पदार्थो कौ मयादा, म्या मचत्र को ही जानते हैं, जिनके बचन की प्रतीति नही, एक जगह श्वीकारता देते हैं, श्रन्य जगद चले जाते हैं, स्वीकारता पाने वाह्ले आशामें बेठे रहतेहिं,किसी संस्था का कार्य करते हुए गुप-चुप अन्य श्रन्य स्थानों मे लिखा- पदी करते रहते हँ भौर फिर बिना पहिले से चेतावनी पिण्दो अचानक उस रास्था को हानि पहुंचा कर चले जाते हैं था अमुक स्थान से शास्त्रादि वस्तुएं छुपा कर ले जाते हैं, इन्यादि प्रकार के ये पणिड़न महाशय किस या किस २ संस्थाश्ों से परीक्षोत्तौण हकर झाए हैं, इनके श्रध्यापक महाशय कौन कौन हैं ? इसके जानने और उनकों हिदायत देने का कष्ट समाज कभी भी नहीं उढ़ाती श्र न कभी कोई रोस्था या संस्थएँ या उनके श्रध्यापक बे संचालक ही कमी इस का दिचार करते हैं, कि हमारे द्वत्र स्र कैषा कार्य कर रहे हैं । हाँ ! यदि कोई श्ादर्श छात्र कहीं हुआ तो गौरव से उसका नाम ले देंगे, परन्तु यटि श्रनादशं इुश्रा वो कनी यह सेचन का भी कष्ट न करेंगे, कि यह ऐसा क्यों हुआ तथा न ऐपा सुधार योग्य प्रयत्र ही करेंगे कि सविष्य में ऐसा न हेने पावे, जब जिम्मेदार समाज, संस्थाएं शोर भध्यापकों का ये हाल है, तो छात्र तो छात्र ही हैं, थे क्यों विचारने चलन ? यद्यदिये बातं कटुक सी प्रतीत हेती हयी, परन्तु विचचार करमे पर सत्य प्रतीत हैंगी, मै कतिपय दृष्टान्त नाम भौर माम निर्देष विना चतर नमूना पेण करता ह. उन पर से बिचार करने का झवसर भिक्तेग गुजरान के प्रांतिज़ आम में एक ढबल न्यायती्थंजी एक श्वेता गब्बर साथ को पढ़ाने आए थे, वे एक महीना रहे, परम्तु प्रमेयकमल- मातंणुड व. श्र्टसइसी तो दूर रही, भ्मेयरेक्माला भी रही, न्याय




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