प्रभु - पूजा या बच्चों का खेल | Parbhu - Puja Ya Bachchon Ka Khel

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Parbhu - Puja Ya Bachchon Ka Khel by ताराचन्द जैन शास्त्री - Tarachand Jain Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| 8 भ, (०-०-99 _ 9 > न क बा क --*------------~-~>~ = = ०० अन, जं देह दिक्खमिक्षा, कम्मक्खयकारणे सुद्धा ।२६। (बोधपाहुड) अथ-ज्ञानमय संयम से शुद्ध वीतराग जिनपिंब होती ह जा कम्य का कारण, शद्ध दीना और शिक्षा देती है । प्रथम तो तार्ण भाईयों के कहने के अनुसार आपने श्रीमद्धगवत्‌ कुन्द कुन्दाचायं के मन्थो को उल्टा पलटा शौर फिर भी आपकी निगाह योध पाहुड पर पडी जिस में उक्त वन है । इससे स्पष्ट ज्ञात होता है कि इसके पहिले झापने कभी कुन्दकुन्दझ्ाचाय कृत ग्रन्थ नहीं देखे थे ओर अब देखे तो भी अपूरे । मात्र बोध-पाहुड पर आपकी दृष्टि पढ़ी तो बहीं आप को उपरोक्त दो सार- गर्पित बातें जिन-घिंघ और जिन-प्रतिमा का यथाथ स्वरूप मिल गया और यदि आप सारे ग्रन्थ का नियमित अध्ययन करते जाते तो झाप को अपने इसी लेख में यह लिखने का कष्ट न करना पड़ता कि “' मूर्ति- पूजा करने से मिथ्यात्व का बंध होने का उन्लेख उन्होंने भी नहीं किया है ” । ना ~ कः = ५ न स्र = के ~ = = =-= क कज य नगनाशाााशारला न ~~ 1 ~ -- कैमननामेययोवििकामाोयायकयोनयनयणयययययाय काके निन ( ४० )




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