काव्य कल्पद्रुम भाग - 2 | Kavya Kalpadrum Bhag - 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
490
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ए)
ध्त्यन्त श्रनुर्त है । किन्तु निद्रा के वशीभूत होकर श्रापने उसको
स्वीकार (उसका सत्कार) नदीं किया श्रत श्रापको निद्रासक्त (रलेपाथ--
झन्य नायिकासक्त) देखकर वह ्रत्यन्त विकल दोग, यह तक कि श्राप
से उसका जो श्रनन्य प्रेम था उसकी उपेक्ता करके वह खरिटता-
नायिका की तरह रप्ट होकर श्रापके निकट से चली गई थी--पर
झापके वियोग की व्यथा उससे न सही गई, श्रतएव इस वियोग-
च्यथा को दूर करने के लिये श्रापकी सुख-कान्ति का कुछ साइश्य
चन्द्रमा में देख कर वह चन्द्रमा को देख-देख कर ही श्रपना मन अब तक
चहला रही थी ] किन्तु चन्रमा भी इस समय प्रभात होने पर श्रापके
मुख के सादश्य को छोडकर पश्चिम दिशा को जा रहा है । ध्रत्तएव श्रच
झ्ापके सादम्य-दर्शन का सनोविनोद् भी उसके लिये श्रद्श्य होगया है--
वह निराश्रित होगई है । कृपया श्रव निद्दा को व्यागकर उस श्रनन्य-
शरणा लदमी को सत्कार पूर्वक स्वीकार करियेगा 1
यहाँ राजा झज में नायक के, लक्मी में राजा की प्रियतमा के
प्रौर निद्रा राजा की श्रन्यतस नायिका के, '्ारोप में रुपफ श्रलड्लार
है। यद्द रूपक, प्रात कालीन निस्तेन-चन्छमा के भग्यन्तर से वणन
किये जाने में नो पर्यायोक्ति अलड्टार है, उसका श्रद्ध है ।
( ४ ) प्रभातकालीन दृश्य पर महाकवि श्री हर्प का एक उक्ति-
वैचिज्य देखिये--
'वरुणएगरदिणीमाशामसादयन्तम्सुं सूची--
निचयसिचयांशांशश्र शक्रमेण निरंशुकम् ।
वुदिनमदहसं पश्यन्तीव प्रसादमिषादस,
निजमुखसित-स्मेर धत्ते हरेमहिपी हरित्।'
>मेंपघीयचरित १81३ ।
के घपने नायक को श्रन्य नायिकासक्त जान कर जो कामिनी
रुप्ट हो जाती है उसे खणिढता नायिका कहते हैं ।
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