कवि 'प्रसाद' : एक अध्ययन | Kavi 'Parsad' : Ek Adhyyan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
294
श्रेणी :
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No Information available about रामरतन भटनागर - Ramratan Bhatnagar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका : “छायावाद” ६
ही नहीं । छायाचाद की कबिता ने इसी परंपरागत श्रद्धार भावना
के प्रति विद्रोह किया है ।
(४) छायावाद की कविता में लाकणिकता की प्रधानता है।
द्रसे रली की विशिष्टता कहना दी ठीक होगा, इसके रूप कई हैं।
कहीं तो छन्योक्ति रौर वक्रोक्ति का झाश्रय लिया गया दे, कहीं
चलेकारों के वक्र, लात्षणिक और अंग्रेजी ठंग के प्रयोग मिलते
हैं, कहीं प्रतीकों का प्रयोग है । इन सवने एक स्थान पर मिल
कर नए पाठक के लिये कितने ही स्थानों पर जैसे कूट-काव्य की
स्टि कर दी है । इनमें सबसे अधिक कठिनता प्रतीकों के संबंध
में है । 'प्रसाद' ने कहा--'आलंचन के प्रतीक उन्हीं के लिये
ड 2 ंगे जिन्होंने यह नहीं समझा है कि रहस्यमयी अतुभूति
ग के अनसार अपने लिये विभिन्न आधार नचुनती है |” परतु थे
प्रतीक इतनी अस्पष्टता, शीघ्रता आर 'अनिश्चतता के साथ
पाठक के सामने आये करि बह् उसे पकड़ दी नदीं सका ।
। (५) छायावाद काव्य में “विश्व-सर्दरी प्रकृति में चेतनता
का आरोप प्रचुरता से उपलब्ध होता है। यह प्रकृति 'थवा शक्ति
का रदस्यवाद हुए? इसके अतिरिक्त प्रकृत्ति श्और मलुष्य में रागा-
त्क संचय ज प्रकार के काव्य से पहली चार सामने श्रता है ।
(६). जीवन के प्रति दृष्टिकोण दुःख श्र निराशापूण है।
सारा छायावाद कान्य दी (प्रसादः भीर 'विराला' के कुछ काव्य
को छोड़ कर) दुःख-प्रधान है। यह दुःख कहीं 'झाध्यात्मिक है
कहीं लौकिंक । 'धिकांश में इसका संबंध व्यक्तिगत असफलता
से है जिन्होंने टेनि घीरे-घीरे दुःख का एक दर्शन ही दे दिया है जिसका
धार श्रौत दशन पर हो रखा गया है । कितने ही कवियों ने
दुःख की साघना को ही काच्य की नेर्यनन गला सार लिया है ।
(७) हम यह सान लेख के लिये तैयार ६ कि छायावाद
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