तुलसीदास | Tulsidass

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१ तुलसीदास “में अब अपनी मादि बतार्भो | अपनी बरिया आद्रि गति गार्भों ॥' जग ब्योहार जगत जग राही । तब उपजा विधि कहीं घुश्नाई ॥ राजापुर अमुना के तीरा । जहूँ तुलसी का भया सरीरा | विधि इन्देखखंड वोहि देसा । चित्रकोद बीच दस. कोसा ॥ संबत .. पंद्रासे नावासी । मादौ सुदी मंगल एकादसी ॥ भया जनम सोइ कहीं चुश्नाई । वाल युद्धि सुधि चुधि दरसाई ॥ तिर्या वरत भाव मन. राता | चिधि थिधि रोत चित्त संग साथा ॥ ज्ञान हीन रस रंग संग साता । कान्दकुब्ज वाम्हन मोरी जाता ॥ जगत भाव झचा सब भाँते । छुरु अभिमान मान सदमाते ॥ सोदा मन कछु चीन्ह भचीन्दा । शान मते मत रहीं मरीना प एक विधौ चित्त रहों सम्हारे । मिले कोइ संत्त फिरों तेहि लारे ॥ संत साथ मोहिं नीका मावै.। ज्ञान अन्तान पक नर्द अवै | अचर आगे का सुनी विधाना । ताकी चिधी कहो परमाना ॥ संवत्‌ सोरसै थे चौधा। ता दिन अया जगम का सौदा ॥ सावन सुदी नौमी तिथि चसै। आधी रात भई गति न्यारी ॥ विज्ञरी चमक भई उजियारी ) कड़का घोरं सोर अत्ति सारी ॥ मन में बहु विधि भम समाया । यह अजगुत कहौ करद से आया ॥ राति वीति गड भयड विहना) मन अचरज सोद कहौं विधाना ॥ पुनि प्रति रोज रोज अस होई.। एक दिवस. सूरति चढ़ि जोई ॥' नीर क्तिखर गुहद्ररे मादीं । निरखा अचरज कहा न जाई ॥ कह गि करौं विधी विपि ढंडा । पुनि सब निरखि पस च्रह्म॑ंडा ॥। गंगा जमुना . और. ब्रिबेनी। कंबल साहि सतयुग की सेनी ॥. पद्व प्रयाय अगमपुर . बासा । सतगुरु कंज सुरति पदं पासा॥ तीनि छोक भीतर सब देखा । कहों कहां ऊणि विधि विधि लेखा ॥ जो ब्रह्मंड भरा जग मांइं। सो देखा झब घट में जाई ॥ >< >< ग< , ><




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