तुलसीदास | Tulsidass
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
374
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१ तुलसीदास
“में अब अपनी मादि बतार्भो | अपनी बरिया आद्रि गति गार्भों ॥'
जग ब्योहार जगत जग राही । तब उपजा विधि कहीं घुश्नाई ॥
राजापुर अमुना के तीरा । जहूँ तुलसी का भया सरीरा |
विधि इन्देखखंड वोहि देसा । चित्रकोद बीच दस. कोसा ॥
संबत .. पंद्रासे नावासी । मादौ सुदी मंगल एकादसी ॥
भया जनम सोइ कहीं चुश्नाई । वाल युद्धि सुधि चुधि दरसाई ॥
तिर्या वरत भाव मन. राता | चिधि थिधि रोत चित्त संग साथा ॥
ज्ञान हीन रस रंग संग साता । कान्दकुब्ज वाम्हन मोरी जाता ॥
जगत भाव झचा सब भाँते । छुरु अभिमान मान सदमाते ॥
सोदा मन कछु चीन्ह भचीन्दा । शान मते मत रहीं मरीना प
एक विधौ चित्त रहों सम्हारे । मिले कोइ संत्त फिरों तेहि लारे ॥
संत साथ मोहिं नीका मावै.। ज्ञान अन्तान पक नर्द अवै |
अचर आगे का सुनी विधाना । ताकी चिधी कहो परमाना ॥
संवत् सोरसै थे चौधा। ता दिन अया जगम का सौदा ॥
सावन सुदी नौमी तिथि चसै। आधी रात भई गति न्यारी ॥
विज्ञरी चमक भई उजियारी ) कड़का घोरं सोर अत्ति सारी ॥
मन में बहु विधि भम समाया । यह अजगुत कहौ करद से आया ॥
राति वीति गड भयड विहना) मन अचरज सोद कहौं विधाना ॥
पुनि प्रति रोज रोज अस होई.। एक दिवस. सूरति चढ़ि जोई ॥'
नीर क्तिखर गुहद्ररे मादीं । निरखा अचरज कहा न जाई ॥
कह गि करौं विधी विपि ढंडा । पुनि सब निरखि पस च्रह्म॑ंडा ॥।
गंगा जमुना . और. ब्रिबेनी। कंबल साहि सतयुग की सेनी ॥.
पद्व प्रयाय अगमपुर . बासा । सतगुरु कंज सुरति पदं पासा॥
तीनि छोक भीतर सब देखा । कहों कहां ऊणि विधि विधि लेखा ॥
जो ब्रह्मंड भरा जग मांइं। सो देखा झब घट में जाई ॥
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