पावस प्रवचन [प्रथम पुष्प] | Pavas Pravachan [Pratham Pushp]
श्रेणी : भाषण / Speech
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
170
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)संस्कारित जीवन २१
नही । मिट्टी का ढेला उठाने के लिए कहेगे तो बड़ी नाराज हो
जायेंगी कि क्या हमको मजदूरनी समझा हैं जो हमसे मिट्टी का
का ढेला उठवा रहे हैं । लेकिन आप सोचिये उस मिट्टी के ढेले को
सिर पर उठाने से अपना अपमान समझती हैं और उसी मिट्टी को
वे घडे के रूप मे सिर पर उठाकर लेकर आ रही हैं । क्या अन्तर
पड़ा * मिट्टी वही, लेकिन उस मिट्टी मे और उस मिट्टी मे रात
ओर दिन का अन्तर पड़ गया । वह मिट्टी असस्का रत मिट्टी थी
जो देले कै रूपमे पडी थी, जिसके ऊपर कोई भी व्यक्ति टद्टी
पेशाव कर सकता है, उसको कोई भी लेकर मार सक्ता रहै, कुदाली
से खोद सकता है लेकिन उसी मिट्टी को कुम्भकार ने उठाकर
जव घडा बनाया, उस मिट्टी का उसने सस्कार करना चालू किया,
यह सस्कार त्रडी मुश्किल से हुमा उसने उसे खूब मथा, राल
भिलाई लेकिन मिट्टी ने सोचा किमेरातो सस्कार करना है,
कुम्भकार ने उस मिट्टी केले को सस्कार करने के लिए उसे
चाक पर चढाया, उसको चक्कर भी खिलाया, लेकिन मिट्टी ने तो
सोचा कि मुझे तो सस्कारित होना हैं । तो क्या वह मिट्टी नाराज
हुई * नही । इतनेसे ही कुम्भकार नही रुका । उसे आकार देकर
ऊपरसे उसे टोका भी । आपने कुम्हार को देखा होगा । जोर जोर
से करता हैं मड़मड, लेकिन फिर भी उसके अन्दर मे वह हाथ रखता
हैं और उस घडे को पीटकर ठीक कर देता है--फिर भी मिट्टी
सोचती है कि तुम खूब पीटो, मुझे तो संस्कारित होना हैं, पीटने के
वाद भी कुम्हार ने चेन नहीं लिया भौर उसको कहाँ रखा ? भाग
के अन्दर । उसके अणु-अणु मे गर्मी पहुचा दी लेकिन उस मिट्टी ने
सोचा कि खूब गर्मी पहुचाओ, लेकिन मैं घड़े के रूप को नहीं
छोड़ें गो क्योकि मुझे तो सस्कारित वनना है। वह मिट्टी का घड़ा
अपनी परेशा नियो से जव उत्तीर्ण हो गया तो वह मिट्टी की हृष्टि
से सस्कारित वन गया, ओर वहिनो के सिर पर चढ़ गया । _
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