प्राचीन राजस्थानी गीत भाग 8 | Prachin Rajasthani Geet Bhag 8

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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~. प्राचीन राजस्थानी साहित्य भमर (गीत साहित्यान्वर्ग ) महाराणा सगा छप्पय गोरियं गुर गुजरात, खोद खिलची कस करिन्नटं । भर शटी रणयंम, भो दिल्ली जौ दिन्नं # जल समरि श्रजमेर, फति नागौर तकर । एप जाति जा्लौर).उन्न जघ यस्स सप्तसर. ॥ “नि राह राइमल्लहे सुतन, फलव कर कि अररवह । संग्राम रान सद चिकत्रवा, इहि मद मततत ,चक्वदह ॥१॥ उर्थ:--राय कॉँब कहता हे. कि 'रायमत्त के सुपुच राणा सांगा में गौर वंश गुमरात के ' वादेशाइ से भी बड़े मालवा के ' लिलजी-बंशीय सुतान पर भध हो, उसे सदे ।दया 1. उसने रणयम्भोर युद्धसेत्र रूपी भ्म द्िल्लीश्वरफे सैनिको को स्ते दिया! ऽस ख्याति श्राप्त करने पवि ्रेषपणाने समस अजमेर शौर मौर पर अधिकार स्थापित कर अपनी कीसि दश्वल को । उसकी दककर जालोर निवासा ही शान सकें, उसका यश सह सिन्घु पन्त फैज्न गया ! इणे वागी मीलों की




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