चर्मरोग चिकित्सा | Charma Rog Chikitsa
श्रेणी : साहित्य / Literature, स्वास्थ्य / Health
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.67 MB
कुल पष्ठ :
150
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ. डिम्पल शाह - Dr. Dimpal Shah
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)घने अकुरो के बीच का स्थान ठीले-ढाले रूप से भरने वाली कोशिकाओं को कहते
हैं जो रक्त-कोशिकाओं और अस्थीय एवं चिकने पेशीय ऊतर्कों को जन्म देती
है ।-ऊनु.) काटल परत की कोशिकाओ में तानुतंतिकाएं भी
पायी गयी है। ये कोशिका-द्रथ्य में झेती है और एक कोशिका से दूसरी कोशिका
तक फैली नहीं रहती, प्रोटोप्लाज्मिक प्रवर्धों मे ही समाप्त हो जाती है। अकुरक
परत की बल्लाकार कोशिकाओं के कोशिका-द्रव्य में वे कम स्पष्ट दिखती है;
जैसे-जैसे हम ऊपरी परत कणमय परत की ओर बढ़ते हैं, काटन परत की
कोशिकाएं चपटी तथा अधिचर्म की सतह के समानातर लघबी होती जाती है और
ऊपरी परत के साथ कोई स्पष्ट सीमा बसाये वरगैर उसमे मिल जाती है|
कणमय परत (5क्षाएाए की मोटाई में (अधिचर्म के
समानातर) कोशिकाओं की एक या दो कतारें होती है (हंथेल्ली व तलवे पर चार
तक होती है), इनके नाभिक क्रमशः छोटे होते जाते हैं और प्रोटोप्लाज्म में मुख्य
रग से गाढठा रजित असंख्य कण दिखने लगते हैं । कुछ विशेषज्ञ इन कणो को
नाभिकीय अवजनन का उत्पाद मानते है, अन्य सोचते है कि
ये तंतिकाओं के टुकडे-ठुकडे होने से बनते है। पहले यह विश्वास किया जाता था
कि ये कण एक विशेष द्रव्य करातोहिंआलिन -शुगीकांच) से
बनते है, पर बाद में पता चला कि यह द्रव्य न तो शगी है, न काचर ही; सरचना
के अनुसार यह १८ से सबधित है । “वुगीकांचर' कणो की उपस्थिति अधिचार्म
कोशिकाओं के श्वंगीभवन का प्रथम दृश्य चरण है।
अधिचर्म की अंकुरक, कांट्ल तथा कणमय परतो को अक्सर एक नाम--
मालपीगी-परत से पुकारते हैं (0४ 1698-1694, इतालवी
अनोरोमक) |
स्वच्छ परत (5920 कणमय परत पर स्थित होती है; यह
लमडी कोशिकाओ से बनी होती है, जिनमे प्रकाश को बहुत अधिक अपवर्तित
करने वाला एक विशेष प्रोटीन-द्रव्य होता है । यह द्रव्य तेल की बूद से मिलता-जुलता
है, अत इसे एलेइडिन कहते है (९८100; ग्रीक से) । मुख्य अवयव
एलंडडिन के अतिरिक्त स्वच्छ परत में ग्लीकोजन तथा कुछ वसीय
द्रव्य भी होते है, जैसे-लिपोइड (005), औलेडक अम्ल (0166 2016) |
सामान्य रजन-विधियो ( 58.1017छू के उपयोग से मोटी उपकलीय
परत वाले चर्म-भैज्ों (जिसे हथेलियों और तलवों) की स्वच्छ परत एक रंगष्टीन धारी
के रूप में दिखती है। कुछ रोगलोचनी प्रक्रियाओ (मीनत्व, रश्नश्वणिता? में भी वह
स्पष्ट दिखने लगती है। यह विचार अब प्रमाणित हो चुका है कि पानी और
विधुविश्लेषको के लिये अधिचर्म की अवेध्यता स्वच्छ परत से ही सवंधित
18 * चर्मरोग चिकित्सा
User Reviews
No Reviews | Add Yours...