मानसिंह और मानसिंह और मानकुतूहल (सचित्र ) | Mansingh Aur Mankutuhal (sachitra)

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Book Image : मानसिंह और मानसिंह और मानकुतूहल (सचित्र ) - Mansingh Aur Mankutuhal  (sachitra)

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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` भूमिका लगभग ग्यारह बारह वर्ष पूर्वे काशी के प्रसिद्ध विद्वान श्री चंद्रबली पांडे ने यह सूचना दी कि ग्वालियर कफ तेवर महाराजा मानसिह ने 'मानकत्‌ हल' नामक ग्रन्थ को रचना की थी, उस ग्रन्थ में उस समय को ग्वालियरी हिन्दी का रूप मिलेगा, श्रतएव मुझे उसकी खोज करना चाहिये ॥ हर कॉम करने योग्य ज्ञात हुश्रा। “मध्य युगीन चरित्र कोष' में यह उल्लेख मिला कि इस ग्रन्थ को एक प्रति रामपुर के राज्य पुस्तकालय में है । भूतपूर्व ग्वालियर राज्य के दिद्या-प्रेमी सरदार राजराजेन मालोजीराव नृसिंहराव दितोले ने मेरे श्राग्रह्‌ पर जनवरी सन्‌ १६४५ में तत्कालीन रामपुर राज्य के दीवान संयद बी० एल० जेदीको इस सम्बन्ध मं पत्र लिखा । जदी साहब ने मानकृत्‌हल की प्रतिलिपि ` कराकर भेजनेका वचन दिया । बड़ी उत्सुकता सेम उसको बार देखता रहा । श्रचानक एक दिन सरदार शितोल ने मक्ष एकं फारसी पुस्तक को पांडलिपि संभला दी श्रौर बतलाया कि जैदी साहब ने यह प्रतिलिपि कराकर भेजी. हं । यद्यपि मूल मानकुतू हुल प्राप्त: न हो सकने से निराया हुई । तथापि जो कुछ प्राप्त हुआ था वह श्रनेक दृष्टि से झ्रत्यंत महत्वप्ण था । मुगल सम्राट श्रालमगीर श्रौरंगजद कारमीर के फ सब्रदार फकीरल्ला हारा हिजरी सनू १०७३ में किए गये सानकुतूहल के फारसी श्रनवाद को वह प्रतिलिपि थी । भदितिकासीन हिन्दी साहित्य फो विकास का मूल स्रोत र्व.लियरो हिन्दी .के झप्ययन का सान तो न मिल




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