रेगिस्तान | Registan

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Registan by कमलेश्वर - Kamaleshvar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उसने शिदगी बरवाद कर दी ? राष्ट्रभाया प्रचार के लिए ? हिदी वे प्रचार और प्रसार के लिए ? पर हुआ वया ? **' सोचा सो यही था कि आजादी मिलने में पहले ही देश में अपनी भाषाएं था जाएं'*'अपनी भाषाएं--मराठी, गुजराती, मलयालम, तमिल, तेलुगु, बंगला, असमिया, पं जावी, उदिया, कइ्मीरो उोगरी, वस्तड ताकि देश मूंगा न रह जाए और सब भाषाओं को जोड़ने के लिए हिंदी था जाएं “पूरे देव को अपनी आवाज़ बिल जाए'** यही तो गाधी जी ने गोचा था 1 लेविंन हुआ वया ? बाज़ादी के नने वरमो याद जव कालीकटे, कोचीन, घगलौर, मद्रास से लौटा भी तो कया मिला ? इतने बरस एके जगह मे दरूमरी जगह मागता रहा `` दधिण मारन में, एक कोने सेद्रूगरे कोने तक देय कौ अपनौ भाषाएं देनी हैं” देश को हिंदी देनी है गन तीस में निकला था स्वदेशी स्दून की मास्टरी छोड कर--हिंदी प्रचार के लिए ! थीर सब लौटा तौ देषा, जहां हिद थी पहले, वहां भी हिंदी नहीं रही है. कहा हैं अपनी भाषाएं कहां है हिंदी ? लोग बैगे ही गूगे बैठे है * उसी तरह पड़े हुए हैं ** सामने नज़र गई तो देखा --उसके किरमिच के जूते धूप में सूख कर अकड़ गए हैं । टेढे-वेडे हो गए हैं । उसे याद भी नही आया कि उसने जूते कब उतार दिए थे । तभी लू का एक बगूला दूर से दौड्ताजाया भौर शीदाभ की सीप जंसी सूती पर्तिया चकरानी- दौडृती उडती चली गदं -कु वही टट गदं । अकुए के रेयमी फूल यमृत में उड़ते चले गए । वह दूर तक दौड़ते जाते धूल के बगूले को देखता रहा । फिर कहीं एक और वगूला उठा'”'फिर एक और उस निंचाट सूने मंदान में ** तभी एक चील चीसी । जैसे उसने किलकारी भरी हो*' फिर कुछ धाणों तक चील की यावाज टूट-टूट कर आई धी-न' ना *'इ'ई'*'जर सामोंगी छा गई थी । स्नन्नाटा ओर वड गया था । पर उसके कान मेअ-- आा-- दई गूर ग्याया।




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