गुरुकुल पत्रिका | Gurukul Patrika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
34
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२००६ |] १५४
अनुसार 'ल' दांयी ओर और अलिफ बा
ओर होना होना चाहिए था । इससे रपष्ट सिद्ध
होता है. कि अरबी लिपि का उद्गम अवश्य
भारतीय या देवनागरी ही रद है ।
अरबी में “'काफ' के कम से कम तीन
रूप हैं । अरबी के तीन रूपों के छिए देव-
नागरी में 'क' के दो नमूने (क, चौर क्त)
है| कः को यदि ऊपरनीचे की दिला में
बिल्कुछ चढटा चर दिया जाय (या रसे
दो स्मकोण पर घुमा दिया जाय जेन्ने ५?)
तो हमें अरबी के 'काफः का एक रूप मिल
जाता है जो रूप अरबी के कान” झञाब्द में
अलिफ के साथ ४ । जब उसी क को बांये
से दांयी ओर को समकोण पर घुमाकर रखते
हैं (अ) तो अरबी के 'काफ' का दूसरा लम्बा
सा रूप बन जाता है ज्ञो उसके कलमः शब्द्
में मिलता है । इस प्रकार म देखते कि
अरबी के ये दोनों बिल्कुल भिन्न प्रपीत होने
वाले रूप देवनागरी के एक ही वसो क) से
निकले है, जिसस स्पष्ट सिद्ध होता है कि
कि अरबी लिपि का मूल भारतीय (देवनागरी)
ही है । देवनागरी में *क' का एक संयुक्त रूप
नक्त है, बां कः का सारभाग रबी के कुछ
°डलटे लः [्- अ ८ | = सारभाग) ¬] जेसा
मालूम होता ह । इसका यह सारभार ही 'अग्बी
में 'काफ' के तीसरे रूप के लिये चुन लिया
गया है । परन्तु यह सारभाग अरबी के 'लाम”
बस से मिलता है, इस छिये इन दोनों में
भेद करने के लिये 'काफ' में एक अतिरिक्त
निश्चायक चिन्ह लगा दिया गया है यह चिन्ह
'काफ) के दूसरे (या देतिज) रूप का ही एक
| अरबी लिपि का देवनागरी से सम्बन्ब
संक्षिप्र संकेत सा है। जैसे अरबी शब्द
“ओल्टक' में है ।
देवनागरी में ४” के कम से कम दो रूप
हैं, इसी प्रकार अरवी में भी इसके दो रूप हो
जाते हैं। चदाहर्ण के लिये देवनागरों में
ष्टः ओर टः दो सयुक्त वस हैं,
जिनमें प्रत्येक में 'र” एक दूसरे से भिन्न रूप
में लिखा जाता है । पर इन दोनों दशाओं में
'र' के अरबी रूप दांये से बांये को लिखे
जाते है, ताकि उनके देवनागरी वाले बांयी से
दांयी ओर के रूपों से वे भिन्न हो जाय ।
जिसे वे क्रमश: तबरुक (प्रसाद) रौर गरब
(पश्चिम) में हैं] । देवनागरी के सारांशों को
क्रमश' समकोण पर 'और डद समकोण पर
घुमाने से झरबी के ये रूप बन जाते हैं ।
अरबी का “स्तराद” बस देवनागरी के संक्षिप्त
बसे निकला है। 'प' का ध्यः के साथ
संयुक्त संक्षिप्त रूप 'ध्य” में देखा जा सकता
है । यदि 'ध्य” को (दांग्री ओर से बायी तरफ
को) समकोण पर घुमाकर देखे तो ज्ञात होगा
कि घूमे हुए व में निचला भाग (आधा
पर) सरलता से अरबी के स्वाद का जनक
हो सकता है । अरबी शब्द सादिक़ (सच्चा)
में इसका संयुक्त दा में संक्तिप्त रूप मिलता है ।
अरबी में ऐसे बहुत से व हें, जिन्हें
सीघा देवनागरी से निकालना समव न था ।
ऐसे स्थानों पर अरबी लेखकों को दूसरे (बने
हुए) वर्णा म बिन्दु लगाकर वै नये अभीष्ट
वस बनाने पड़) उदारहणायथे इस साधारण
युक्ति ने तोय से जोय को अौर स्वाद् से ज्वाद
को जन्म दिय) [श्ननु०-श्री सलत्रत गुप्त वेदा०।]
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